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राघवदास कृत भक्तमाल
रघवार वान पहूंचिही, किती अकलि मुझि रंक की। क्यूं करि बरनौं आदि घर, खबरि न येकौ अंक की ॥१९७ ग्यांनदेव गंभीर चित, बिष्णु-स्वामि की संप्रदा ॥ नांमदेव नव-खंड, नांव नौबति बजाई। हरदासहु जै देव, भक्ति की रीति बढाई। तिलोचन करि प्रीति, पाप केसौ बसि कोन्हौं ।
मिश्र नरांइनदास, छाप लाहौरी चीन्हौं । याही मै बलभ भये, हिरदै मैं भगवत सदा। ग्यांनदेव गंभीर चित, विष्णु-स्वामि की संप्रदा ॥१९८
___टोका
इंदव ग्यांनहि देव सु संकर पद्धिति, चित्त गंभीर हु बात सुनीजे । छद त्याग पिता घर धारि सन्यासहि, झूठ कही पृय नांहि न लीजे ।
आत तिया सुनि पाछहि दौरत, लाप रहै मुख आगर कीजे । ल्यात भई घरि जाति रिसावत, पांति निवारत कोऊ न छीजे ॥२१२ तीन हये सुत दीरध ग्यांनहि, देव भजै हरि प्रीति लगाई। कोऊ पढ़ावत नांहि सु बेदन, बिप्र करे इकठे किम भाई । ब्राह्मन कौं अधिकार कहे श्रुति, भैंसन कौं पढ़ तेहु सुनायी। भक्तिहि सक्ति निहारी सबै द्विज, पाव लये अरु देत बड़ाई ॥२१३
नांमदेवजी को मूल नांमदेव बचन प्रभु सति करे, ज्यूं नरस्यंघ प्रहलाद के ॥टे०
प्रतिमां कर पै पाइ, बछ अरु गऊ जिवाई। महल पातिस्या जरे, सेज जलपैं मंगवाई। देवल फेरचौ द्वार, सभा के सबही सुकचे ।
अतुल रह्यौ रंकार, दरिब बहु बहुड़े बुगचे। राघो छोनि छई इसी, पार नहीं प्रहलाद के।
नामदेव बचन प्रभु सति करे, ज्यूं नरहरि प्रहलाद के ॥१६६ इंदव असौ नर नामदेव नाम को पुंज, सदा रसना रुचि रामजी गायौ । छंद असौ गुनी भयो दीन दुनी बिचि, प्रीति प्रचै प्रतिमा पै पिवायौ ।
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