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________________ ९० ] राघवदास कृत भक्तमाल तांन ताल तुक छंद, राग छतीस गाई धुर । प्रवर बिबिधि रागरणी, तीन ग्रांमहु सपत सुर। जन राघो तगि त्रियलोक महि, गिरा ज्ञान पूरण भरचौ। यम जैदेव सम कलि मैं न कबि, दुजकुल दिनकर अवतरचौ ॥२०२ इंदव ये जैदेव से कलि मैं भगता कविता, कबि कीरति ब्रह्मी' के अंसी। छंद छाप परी द्विज के कुल की निज, तासं कहावत जैदेव बंसी। __अष्टपदी असतूती सतोत्र, गाये पढ़े हरि हेत हुलंसी। राघो कहै मृत सौं पदमावति, फेरि श्रजीव करी हरि हंसी ॥२०३ [टोका] इदव किंदुबिलै सु भये जयदेव, धरचौ सिणगार सुका बिन मांहीं। ___ नौतम रूंख रहै दिन ही दिन, है गुदरोस कमंडल प्रांहीं। बिप्र-सुता जगनाथ चढांवन, जात भयो जयदेव बतांहीं। जात जहां कबिराज बिराजत, लेहु सुता यह बिप्र कहांहीं ॥२३२ देखि बिचार जहां अधिकार, बिभौ विसतार तहां इह दीजै। श्रीजगनाथ कि प्राइस राखहु, टारहु नांहि न दूषन भीजै। ठाकुर कै तिय लाख फबै हमकौं, नहि सोहत येकहि खीजै। जाहु वहां फिरि बात कहौ तुम, नांव तिया वह रूंख न धीजै ।।२३३ बिप्र कहै अब बैठि रहौ इत, प्राइस मेट सकौं नहि बाई। ऊठि चल्यौ समझाइ रहे जन, सोच परयौ समझौ मन भाई। बालहि कौं द्विज बात कहै कछु, तूहु बिचारि कहूं उठि जाई। हाथहि जोरि कहै अलि जोर न, यौ तन तौ तजि हौ मनि आई ।।२३४ होत भई तिय जोर करयौ हरि, छांनिहि बांधिर छाइ करांवें। छाइ भई तब पूजन राखत, नौतम उत्तम ग्रंथ बनावें । गीत-गुबिंद उदित्त भयो सिर, मंडन मांन प्रसंग सुनांवें। ऐह पदा मुख नै निसरचौ अति, सोच परयौ हरि प्राइ लिखावै ।।२३५ पंडित भूप पुरी पुरसोतम, गीत-गुबिंद वही सु बनायो। बिप्र सभा करि वाहि दिखावत, च्यारि दिसा पठवो सु सुनायो। ब्राह्मन देखि हसे लखि नौतम, उतर देत न चित्त भ्रमायो। दोउ धरी जगनांथहि पांइन, नांखि नई वह कंठि लगायो ॥२३६ १. ब्रह्म । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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