SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४ ] राघवदास कृत भक्तमाल प्रात भयो सब लोग सूनी चलि, आवत देषन भीर भई है। साध महंत भले पुनि आवत, छाप सरीरहि देखि लई है। भेट धरै बहुमांन करै नृप, लाज मरै सुनि बात नई है। देवल श्रीनरस्यंघ बनावत, होत खड़े जत साखि दई है ॥२०७ नैन बिनां द्विज द्वार परयौ सिव, चाहत है द्रिग मास बंदीते । नाथ कहै यह फेर न होवत, जात नहीं मन मांहि प्रतीते। ले पृथिराज अगोछ छुवावहु, प्रांनि कहीं दिज सौं भय भीते । नौत्म लाइ दयौ तन के छुय, आंखि खुली द्विज ह्ये चित चीते ॥२०८ मूल छपे आसकरन के पास यहु, मन मै मोहनलाल हरि ॥ भीव पिता गुर कोल्ह, भक्त भगवत सम देखै । जो कछू घर मधि माल, जितौ साधन के लेखे । जज्ञ महोछव रास, दास हरिजी के पूजे । भरम करम कुल रीति, प्रांन धर्म छाड़े दूजे । राघो राम रच्यौ भलौ, कूरम-कुल पृथीराज घरि । प्रासकरन के पास यह, मन मै मोहनलाल. हरि ॥१९२ टोका इंदव कोट नरव्वर को बड़-भूपति, मोहनलालहि सेव करै हौ। छंद मंदरि मैं रहि पैर सवा इक, चौकस जान न पात नरै हो। काम भयौ नृप बेगि वुलावत, लोग कहै नहि कान धरै हौ। फौज चढ़ी पतिस्या चलि आवत, जाइ कही तउ नांहि डरै हौ ।।२०६ फेरि पठावत रारि सुनावत, चित्त न आवत साहि गयो है। चित भई प्रतिहार कही इक, आप पधारहु जात भयो है। पूजन है परनाम करै नृप, ढील लगी पग खंग दयो है। ऐडि बढ़ी मुखिसी न कढ़ी निति, नेम सध्यौ तब द्वार लयो है ॥२१० नांखि दई चिग देखत पीछहि, साहि सलाम करी बहु रीझे। साच सनेह लख्यौ फिर बूझत, भाव कह्यौ सुनिकै नृप भीजे । भक्त तज्यौ तन भूप भयौ दुख, आप सुनी प्रभु भोग न कीजे । सेव करै द्विज गांव दये तिन, लाड़ करौ उसके प्रभु धीजे ॥२११ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy