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छद
चतुरदास कृत टीका सहित
[ ३ मनहर परस कू पारस मिले हैं गुर पीपा प्राइ,
आपसौ कीयो बनाइ बारंबार कसिके। खोयौ है कन्यां को कोढ़' धोवती दई वोट,
सकति की सेवा मेटी ताकै गृह बसिके। खाती को खलास करि रीझे हैं परसपरि,
माथै हाथ धरचौ स्वामी हेत सेती हसिक। राघो कहै प्रास२ प्रसिधि भये तीनूं लोक,
___ संतन की सेवा कीन्ही पूठी हरि असिकै ॥१६० छपै कूरम-कुलि दुती बलि बिक्रम यम, निबह्यो पन पृथीराज कौ ॥
दया द्वारिकानाथ, करै तौ दरसन जाजे । परे कुदरती चक्र, आइ अांबेर निवाजे'। घरि-घर नीबा ईस, आप राजा रुति गांमी। सुत उपजे षट3 दोइ, भये नौ-खंड मधि नामी । हुवो हरि भगतन को भगत, जन रावो बड़ कुल काज को। कूरम-कुल दुती बलि बिक्रम यम, निबह्यौ पन पृथीराज कौ ॥१९१
टोका इंदव संग चल्यौ गुर कै पृथिराजन, प्रोति घणी रनछोड़हि पांऊं । छंद बात सुनी स दिवांन गयो निसि, भक्ति हुई गुर संतन गांऊं।
लेहु बिचारि करौ तव भावस, संगि न लेवत बात दुरांऊ । प्रात भये नृप आवत चाहत, आप कही रहिये सुख पांऊं ।।२०४ गोमति न्हाइर लेवत छापहि, देखत हौं रणछोड़ पुरी कौं। तीनह बात इहांहि लहौ तुम, सोच करौ मति देखि हरी कौं। मांनि लई पहुचांवन जावत, आई घरां नृप जांनि खरी कौं। दोइ गये दिन सौवत हौ निसि, आइ कही उठि लेह करी कौं ॥२०५ बोलि गुरू जिम आप कहै प्रभु, प्राइ गयो उठि सीस नवायो । गोमति मांहि सनांन करौ कहि, न्हाइ लयो सुनि पाप न पायो । छाप भई भुज संख चक्रादिक, ढील लगी त्रिय प्राइ चितायौ। सेस रह्यौ जल सुद्ध करौ तन, रांम धरौ उर भूप सुनायौ ॥२०६
१ पक हेढ़। २. पारस, परस। ३. घट । ४. लहैं।
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