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________________ ८२ ] छपै मूल चढाई । बीठलदास हरि भक्ति करि, जुगल पांनि मोदक चढ़े ॥टे० सदा प्रेम परण रहत, संत रज सीस तरकि तज्यौ संसार, येक हरि भक्ति संप्रदाइ सिंध जादि पत, दीपक ज्यौं जन परषत सतकार, करें रैदासी जांनौं । लोक उभे हरि गुर दये, सबद साखि निसि दिन रढ़े । बीठलदास प्रभु भजन करि, जुगल पांनि मोदक चढ़े ॥१८६ परसोतम गुर की कृपा, जगंनाथ जग जस क ॥ ० प्रेम भक्ति कौ पुंज, सिंधु जा पधित संभारी । श्रीरामांनुज पन प्रीति, रीति उर अंतर-धारी । संसकार सतकार, सनातन धरम समद - मादि मुनि बृत्ति पारासुर कुलको थयां, रामदास घरि तन धौ । परसोतम गुर की कृपा, जगंनाथ जग जस क ॥१८७ दातार भलप्पन उर भलौ, सौ भक्त कल्यांन है ॥ सुहावै । बिसद हरि के जन भावे । लीलाचल पति भृति, चतुर हरि कौ चित चाह्यौ । उत्म भक्त पिछांनि, मांनि अपनौ निरबाह्यौ । देह त्यागती बेरि, हेत सीता-बर कीन्हों । बांम जांम घर बित्त, काढ़ि मन रांमहि दीन्हों । बिद्युत प्रभा परकास सम, धर्थौ स्यांम धन ध्यान है । दातार भलप्पन उर भलौ, सौ भक्त कल्यांन है ॥१८८ ये भरथ- खंड मधि भूप, द्वै टोला लाहा भक्ति के ॥टे० अंगज परमांनंद, परम भजनीक उजागर । जोगीदास रु खेम, दिपत दसधा के आगर । ध्यानदास के सोज, गही गुर धरम की टेका। हरीदास हरि भक्ति करी, प्रति मरम की येका । जन राघो रटि रांमजी, काटे बंधन सक्ति के | ये भरथ-खंड मघि भूप द्वै, टोला लाहा भक्ति के ॥ १८६ १. सिंधु Jain Educationa International राघवदास कृत भक्तमाल For Personal and Private Use Only दिढ़ाई । मांनौं । www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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