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चतुरदास कृत टोका सहित
[८१ भक्ति करौ जन भाव धरौ तब, देत तुमैं सुनि लेत करीजे । साखत भक्त भयेरु सराहत, पंच कहै तुम्हरे पन रीझे ॥२०२
मूल करणी जित कबीर-सुत, अदभुत कला कमाल की ॥
प्रगट पिता संमाज रहे, कछु इक दिन द्वार। सतवादी सत-सूर, भजन सौ कबहूं न हारे। सुक सनकादिक जेम, नेम सूं निरगुण गायौ।
मन बच क्रम भयो मगन, भेव कांहू नहीं पायौ। जन राघो बलि (बलि') रहरिण की, पहुंचे राल न कालकी। करणी जित कबीर-सुत, अदभुत कला कमाल की ॥१८३ श्रीनंद-कुवर सन नंददास, हित चित बांध्यौ भाइकै ॥टे० समैं समैं के सबद, कहे रस ग्रंथ बनाये । उक्ति चोज प्रसताव, भजन हरि गांन रिझाये। महिमांसर परजंत, रामपुर नग्र बिराजे ।
संत चरन रज इष्ट, सुकल सरबोपरि राजे। भ्राता राघो चंद्रहास है, सो सब गुण लाइक। श्रीनंद-कंवर सन नंददास, हित चित बांच्यौ भाइक ॥१८४ अति प्रतीति उर बचन की, गुर गदित सिष सति मांनियो । सीष पाइकै चल्यौ, कहूं कारिज के ताई। मेरे मन की बात, कहूगो सीघ्र आई। रांमसरनि भये स्वामि, दगध करने लै जांहीं ।
मनि गुर-गिर बिसवास, फेरि लीये अस तल मांहीं। बिभू बरसहि यह कही हरि-जन गुर इक जांनियो । अति प्रतीति उर बचन की, गुर गदित सिष सति मांनियौ ॥१८५
टोका इंदव है गुर भक्तस नून गिनें जन, पूजि मनैं गुर क्यूं समझावै । छद कै न करै परि नांहि कहै निति, रामति चालत बेगि बुलावै ।
टि गयौ तन बारन देतन, ल्यावत फेरिस बात जनावै ।
भाव लखै सति यौं जिय बोलत, सेव करो जन वर्ष दिखावै ॥२०३ १ छलि।
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