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चतुरदास कृत टीका सहित
बांचत पुस्तक नाम हरै अघ, सत्य सबै परमांन कहीजे । है परतीति कहो तुम ही जिम, खाइ नदी सुर पांतिहि लीजे । भोजन ले करि मंदिर आवत, भक्त कहै यह न्याव करीजे। जांनत हो तुम नाम प्रतापहि, पाइ लयो जय सब्द भनीजे ॥१८१ रैनि निसाचर चोर न पावत, स्यांम सरूप खड़े सर लीया। आत तबै तब सांधि डरावत, प्रात ल- हरि ांन न दीया । बूझत संतहि स्यांम सिपाहिन, बोलत नांहि न नैंन भरीया। राय लुटावत यौं न सुहावत, चोर भये सिष राम भजीया ॥१८२ मृत्यु भयो द्विज नारि सती हुत, जोरि करौ दुय सीस नवायो । रांम सुहागनि बैंन कह्यौ पति, मौति भई उठि है हरि भायो। स्यांम भजौ सबही कुल सौं कहि, मांनि लई उन बेगि जिवायौ । भक्त भये सब साखत ता तजि, लेसर रहै मन लोक न पायौ ।।१८३ लैन खनाइ दये पतिस्या भृति, ज्याइ दयौ दिज यौं कहि सूबा। चाहत देखन ल्याव (त) भली बिधि, जात बिनैं करि यौं पग धूबा। भूप मिले चलि ऊपरि लेवत. दे बहुमांन कहै तुम खूबा । द्यौ अजमत्ति सुनी अति गत्तिहि, रांम करै हमसौं नहि हूबा ।।१८४ रांम करै सु दिखाइ हमै अब, रोकि दये हनुमान हि ध्याये । बेगिहि बांदर म्हैल चढे बहु, फारत अंबर देह लुचाये । ढाहत है गढ़ नांखि तलै लढ़, दांतन तें बढ़ भूप डराये । प्रांखि हुई यह कौंन दई सु, पुकारि कही अब राखि हराये ॥१८५ पाइ परयौ हम जीव उबारहु, देखि अजम्मति लाज नयौ है । सांत करे सब भूपहि भाखत, मां न रहौ गढ़ रांम भयौ है। त्याग दयो सुनि और करावत, हाजर है नहीं फेरि पयौ है। जाइ बनारस आइ बृदाबन, नाभहि सूंज कबित्त लयो है ॥१८६ कांम गुपाल जु को कर दर्सन, राम सरूपहि सीस नवांऊं। धारि लये कर साइक धन्नुक, देखि छबी कहियौं गुन गांऊं। कोउ सुनांवत कृष्ण सुयं हरि, रांम कला कहि मैं न भुंलांऊं। जांनत हौ दसरत्थ लला अब, ईसुर आप कहे मन लांऊ ।।१८७
१. भलीया। २. लैस । ३. कयौँ। ४. अजन्मति ।
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