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राघवदास कृत भक्तमाल भक्त जक्त निसतार नैं, नाम रूप बोहिथ धरयौ।
तुलछी राम उपास की, राम चरित बरनन करयौ ॥१७० मनहर कासी मधि कामजित तपोधन जोग बित,
अति उग्न तेज तप भयो तुलछीदास को। मगन महंत गति बांगों को बिचित्र प्रति,
राम राम रौम सत्य ब्रत सासौ-सास कौ ॥ जत सत सावधान अमृत कथा को पान,
हरि की कृपा सू वै हजूरी भयो पास को। राघो कहै राम काम अरप्यौ तन मन' धांम, गह्यौ मत अन येक अटल अकास कौ ॥१७१
टीका : तुलसीदासजो की प्रीति तियाहि गई उठि बूझिन, दौरि गयेस गई वहि ठौरा । लाज मरी कहि रीस भरी अब, राम भजौनि तिमा सच चौरा। ग्यांन भयो सुनि सोचि विचारत, जात बनारसि धांमहु छोरा । रांम भजै हरि पूजन धारत, मारत है मन है यह चोरा ॥१७७ बाहरि जात रहै कछु नीरहि, भूत पिवै हनुमान बताये।
आवत मंदिर राम चरित्र, सुनै उठि जातस पैल पिछाये। जात लखे चलि प्रारनि हू लगि, पाइ परे दुरि दूरि सुनाये । जांन न देंत करौ किरपा अब, जांनत कैसक भूत बताये ।।१७८ लेहु कछू बर रांम मिलावहु, कामतनाथ मिलै प्रभु प्यारे। कौल करयौ नवमी सुदि चैत्रह, प्रीति लगी वह द्यौस निहारे । आवत वा दिन राम लखम्मन, बाज चढ़े पट रंग हरयारे । आइ कही हनुमंत लखे प्रभु, मैं न पिछांनत फेरि दिखारे ॥१७९ ब्राह्मन येक हत्या करि पावत, राम कहै कछु देहु हत्यारे । नांम सुन्यौ घर मांहि बुलावत, भोजन दे सुछ नाम तुम्हारे । बिप्र जुरे सब जाइ कहै इस, पाप गये किम जीमत लारें। बांचत हौ तुम बेद पुरांनन, साच न आवत ग्रन्थ पुकारें ॥१८०
१. धन ।
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