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चतुरदास कृत टीका सहित
[७१ लाखा छीतर देवकरन, देवासु सुघड़ प्रति ।
खेम राइमल गौड़, करी ग्रह भगति-भाव मति । अदभुत राइमल नीपजे, गुर कोल्ह करन कौं सरण गहि । मन बच क्रम धर्म धारि उर, जन राघो उधरे राम कहि ॥१५८ जन के कारिज करत है, अनबंछित हरि प्राइ॥
ये नाभा जगी प्राग, बिनोदि पूरण पूरे। बनवारी भगवान, दिवाकर नाहि न दूरे। नृस्यंध खेम किसोर, लघु ऊधौ जगनाथहि । ये तेरह सिष अग्र के, सीझे मुनि गुर के साथहि । जन राघो रुचि प्रीति पन, जे मन सधत सुभाइ । जन के कारिज करत है, अनबंछित हरि प्राइ ॥१५६
नाभाजी को मूल मनहर नाभ नभ सेती कीन्हौं खीर-नीर भिन भिन, छंद
ग्रंथन को सार सरबंगी हरि गायौ है। भक्ति भगत भगवंत गुर धारि उर,
बिच र बखांरिण सर्वही कौं सिर नायौ है। सत-जुग त्रेता पर द्वापर कलू के भक्त,
. नांव क्रितमाला कोनी नीको भेद पायौ है। राघो गुर अगर कू अपि गिरा गंगजल,
पुरे पतिब्रत बलरांम यौं रिझायौ है ॥१६०
छपै
अंधेर अज्ञता नासन, उदित दिवाकर दूसरौ ॥
परमोधे भूराज, नहीं को प्राज्ञा मोट। पक-पादप की न्याइ, संत पोषन ले भेटे । श्रब मैं छाया कृपा, गिरा भोला यौं बोले । सुमरै रघुपति निति, साध के अंघ्री खोले । कसिप करमचंद सुत, सुहृद बरखे ऊसर सूसरौ। अंधेर अग्यता नासने, उदित दिवाकर दूसरौ ॥१६१
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