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________________ ६६ ] राघवदास कृत भक्तमाल त्रिबिधि ताप तन दूरि, जीव जे आये चरणां । तारिक मंत्र सुनाइ, मिटायो जामरण-मरणां । सुख पायो संसौ मिट्यौ, पूजि परम गुर-धांम कौं। यौं रामानंद प्रताप तै, जन राघो भेटे राम कौं ॥१४२ सुर सुरानंद साचै मतै, महा-प्रसाद सब मांनियौं ॥टे० चले जात मघ मध्य, जीमिये बरा बाकछल । पीछे पाये सिषन, देखि स्वामी को सुभ चल । वासू प्रापन कह्यौ, बवन करि नांखि प्रभागे। ___ उन फिरी कीयो ढेर, जिसे खाये थे प्रागे। सुपति सुरसुरी ऊगले, पुसप पतासे जांनियौं। सुर सुरानंद साचै मतै, महा-प्रसाद करि मांनियौं ॥१४३ इंदव साचै मतै सुर सुरानंद नांव ले, काहूं सौं मांन गुमान न जाकै । छद दोजगी दुष्ट दुसोल इसे परि, क्षोभ भरे जिव छिद्र न ताक। वै निरदोष निरपक्ष निरमल, ताहू सौं खेचर खेचरी हाकै । राघो कहै भर भीर परें, प्रगटे परमेसुर बोचि सभा के ॥१४४ छपै यौं निधून नर-हरियानंद को, वा माता सू महिमां भई ॥ लगी झरन की झोंक नंद के नहीं बरीतौ। हुतौ द्रुगा को द्वार सहर मैं सदन बदीतौ। राघों रूतौ महंत मात की छाति उपारी। तब कीयो भवांनी कौल भक्त ग्रह लकरी डारी। इक पारौसी हरि बिमुख सत के भोरै बूडौ। कूटे जाइ कपाट जाल पाप करयौ जूड़ौ । आप बदलै की बेठ गहि, निति साकत के सिरि दई । यौं निधून नरहरियानंद की, वा माता सूं महिमां भई ॥१४५ यौं नारि सुर-सुरानंद की, प्रभु राखी प्रहलाद ज्यू ॥टे० ध्यान करत धर्महीन, असुर जब भये सकांमी। स्यंघ रूप कौं धारि, उद्यत भये अंतरजांमी । धरि धरि पटके दुष्ट, नष्ट दांतन उर फारे। कछू जीवत गये भाजि, महापापी संघारे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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