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________________ चतुरदास कृत टीका सहित ज्ञांनहि देवन स्वामि चले किन, जाइ कही अब सेव कराई। जीन करावत मोचिन के घरि, आइ परयौ पगि यौं सुनताई ॥१४३ बांझ तिया इक रूपवती गृह, मांगत स्वामि न ल्यौं मन नांहीं । ल्यांन चल्यौ गुर स्यंघ बन्यौ लखि, होत खड़ी डर दोइ पखांहीं । स्यंघ मिट्यौ पुनि बाल भयो तिय, देखि प्रभावहि सीस नवांहीं। आप खिजे वह भाव कहां, तव दास करौ अब ठेठ निबांहीं ।।१४४ दे उपदेस कियो सुध भूपति, नेम लयो फिरि धांम गयो है। नाम भगत्त तिया निसि मांगत, लेहु कही भजि है न पयौ है। लार भगी दिन होत चली नहि, धांमन धांमन देखि नयो है । मात चलौ तव धांम धरौं फिरि, काम मिट्यौ गुर-भाव भयो है ॥१४५ च्यारि बिषी नर स्वांग लयो धरि, मांगत सीतहि बेगिहि लीजे । अंग बनाइ रही घरि येकल, आवत, प्राकुल जाहु रमीजे । जातहि स्यंधनि खावन आवत, खात नहीं प्रभु भेष धरीजे। रोस करै तुम भाव निहारहु, मांनिहु ये सिष राम भनीजे ॥१४६ संतन कौं दल लेरु पुवावत, गूजरि मांगत तेर दुगांनीं। आवत भेटहि आजि सबै तव, पीपहि साच स बात बखांनी। माल चढ़ावत आइ महाजन, है सत च्यारि हुवो प्रवांनी। देत न लेत दयो समझाइ, बुलाइ मिलाइ जिमाइ सिहांनी ॥१४७ ब्राह्मन के घर चक्र भवांनिहि, पीपहि न्यौतत संत सुजांनी । रांमहि भोग लगाइ र पावत, ल्याव सबै बिधि थोर स ांनी। भोग लगी रिधि ईस्वर कै सब, भूख मरौ द्विज रोस भवांनीं। वै किन मारत जोर न चालत, छोड़ि दई हरि भक्ति करांनी ॥१४८ तेलनि रूपवती इक देखि र, स्वामि कहै करि रांम उचारा। जाइ धणी मरि रांम कहै जरि, बोलत क्यून भगत्त बिचारा। तौ जबही करि जात धणी मरि, होत सती तब रांम संभारा। स्वामि कहै अबलै निस-बासुर, तौ रजिवावत ल्यौं रजि वारा ॥१४६ भूपति भैसि दई बन मैं चरि, नापहि आइ रहै घर मांहीं । दोहिं बिलोइ र साधन पावत, छाछि रहै फिरि राब रधांहीं। चोरि लई उन जान दई फिरि, पाड़ि न ल्यौ वह सोचि रहांहीं। हो तुम कौन स पीप कहै मुहि, देत भये अर पाइ परांहीं ।।१५० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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