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________________ घ ] भक्तमाल प्रति में १६४ पद्य हैं। प्रियादास की टोका में २१४ पद्य छपे हैं । शुक्लजी ने इसकी छन्द-संख्या ३१६ बतलाई है। इससे मालूम होता है कि समय-समय पर अन्य व्यक्तियों द्वारा प्रक्षेप होता रहा है। और इसलिये इसका रचना-काल भी अभी तक निश्चित नहीं हो पाया। साधारणतया इसका रचना-काल संवत् १६४२ से १७०० तक का माना जाता है। पर मूल ग्रन्थ में रचना-काल दिया हुआ नहीं है और इस ग्रन्थ में जिन व्यक्तियों संबंधी पद्य हैं, उनमें से कई व्यक्ति और उनके ग्रन्थ संवत् १६८६ और १७०० के बीच के समय के हैं। इसलिये श्री वासुदेव गोस्वामी ने इसका रचना-काल संवत् १६८६ के बाद का सिद्ध किया है-(देखें, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ६४, अंक ३-४) । श्री किशोरीलाल गुप्त ने अपने 'भक्तमाल का संयुक्त कृतित्व' नामक लेख में, जो कि ना० प्र० पत्रिका, वर्ष ६३, अंक ३-४ में छपा है, लिखा है कि भक्तमाल अभी जिस रूप में उपलब्ध है, वह एक व्यक्ति की रचना न हो कर ३ व्यक्तियों की रचना है। उन्होंने लिखा है-"भक्तमाल के अनुशीलन से स्पष्ट होता है कि यह ग्रन्थ किसी एक व्यक्ति की रचना न होकर कम-से-कम ३ व्यक्तियों की संयुक्त कृति है। ये ३ व्यक्ति हैं-अग्रदास और उनके शिष्य नारायणदास तथा नाभादास । ......... मेरा ऐसा खयाल है कि नारायणदास के मूल भक्तमाल का परिवर्तन नाभादास ने किया और आज वह जिस रूप में उपलब्ध है, उसे वह रूप देने का श्रेय नाभादास को है । नाभादास ने ग्रन्थ की भूमिका और उपसंहार में कोई परिवर्तन नहीं किया है और भक्तमाल के सभी दोहे नारायणदास की हो रचना हैं । नाभादास ने केवल छप्पयों को ही बढ़ाया है। २४ छप्पय अग्रदास कृत हैं। जिनमें से २ में स्पष्टतः अग्रदास की छाप है। अनदास के छप्पय नाभादासजी ने भक्तमाल को वर्तमान रूप देते समय जोड़े। भक्तमाल के ३० से १६६ संख्यक १७० छप्पयों में भक्तों का विवरण है, इनमें से १०८ छप्पय नाराणदास के होने चाहिये और ६२ नाभादास के।" श्री किशोरीलाल गुप्त ने इस संबंध में विस्तार से प्रकाश डाला है। स्वामी मंगलदासजो को राय में दादूपन्थी राघोदास ने भक्तमाल की रचना नारायणदास रचित भक्तमाल के आधार से संवत् १७१७ में की है। प्रतः उसके तुलनात्मक अध्ययन से भी नारायणदास (नाभा) की भक्तमाल के मूल पद्यों का निर्णय करने में सहायता मिल सकती है। इस सम्बन्ध में वृन्दावन से प्रकाशित भक्तमाल वाला बृहद् संस्करण भी महत्त्व की सूचनाएँ देता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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