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________________ भूमिका [ ग सतरहवीं शताब्दी के कवि नाभादास ने सर्वप्रथम भक्तमाल' नामक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ बनाया। उसके बाद तो उसके अनुकरण में 'भक्तमाल' और असी ही अन्य नामों वाली रचनाओं बहुत-सी रचो गयीं ओर प्रायः प्रत्येक भक्ति और संत संप्रदाय के कवियों ने पौराणिक-भक्तों के नाम अवं गुणस्तुति के साथ-साथ अपने संप्रदाय के संत अवं भक्तजनों के नाम तथा चरित्र-संबंधी प्रसंगों का समावेश अपनी रचित भक्तमालों में किया है। सन्त एवं भक्तों को परिचइयाँ१७ वीं शताब्दी से ही हिन्दी में संतों एवं भक्तों के व्यक्तिगत परिचय को देने वाली 'परिचयी' संज्ञक रचनायें भी रची जाने लगीं, ऐसी रचनाओं में सर्व प्रथम अनंतदास रचित पाठ परिचइयाँ प्राप्त हैं, जो कि सं० १६४५ के लगभग को रचनायें हैं। इसके बाद तो छोटी व बड़ी शताधिक परिचयो संज्ञक रचनायें रची गयीं, जिनमें से १५ परिचइयों का आवश्यक विवरण डॉ. त्रिलोकीनारायण दीक्षित ने 'परिचयी-साहित्य' नामक ग्रंथ में प्रकाशित किया है, जो लखनऊ विश्वविद्यालय से सन् १९५७ में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद मैंने असी रचनाओं की विशेष रूप से खोज को, और करीब ७५ रचनामों की जानकारी 'राष्ट्रभारती' के जनवरी और सितंबर १९६२ के अंकों में प्रकाशित मेरे दो लेखों में दी जा चुकी हैं। अब मैं 'भक्तमाल' नामक स्वतंत्र रचनाओं की जानकारी यहाँ संक्षेप में दे देना आवश्यक समझता हूँ। भक्तमाल साहित्य की परम्परानाभादास को भक्तमाल, उसको टोकायें और प्रकाशित संस्करण भक्तों के चरित्र-संबंधी हिन्दी-काव्यों में सब से प्राचीन एवं सब से अधिक प्रसिद्ध ग्रंथ नाभादास की 'भक्तमाल' है। इसकी पद्य संख्या, रचना काल, आदि अभी निश्चित नहीं हो पाये, क्योंकि प्राचीनतम प्रतियों के आधार से इस ग्रन्थ का सम्पादन वैज्ञानिक पद्धति से नहीं हो पाया है। कई विद्वानों की राय में मूलतः इसमें १०८ पद्य (छप्पय) थे, जैसे कि माला के १०८ मनके होते हैं। पर उतने पद्यों वाली प्राचीनतम प्रति अभी तक प्राप्त नहीं है । संवत् १७७० की जिहाँ तक मेरी जानकारी है, संवतोल्लेखवाली प्राचीन प्रति सं० १७२४ की लिखित सरस्वती भण्डार उदयपुर में है। वृन्दावन से प्रकाशित भक्तमाल के पृष्ठ ८६९ में सं० १७१३ की अन्य प्रति का उल्लेख किया है, पर वह कहाँ है-इसकी जानकारी नहीं मिल सकी। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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