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________________ भूमिका भक्तमाल की निम्नोक्त टीकामों का उल्लेख विभिन्न ग्रन्थों में देखने में पाया है। १. प्रियादास की टीका 'भक्ति-रस-बोधिनी' सं० १७६९ । में रचित सं० १९८८ में वेंकटेश्वर प्रेस से प्रकाशित संस्करण में मूल पद्य २१४ और टीका पद्य ६२४ । २. 'भक्तमाल प्रसंग' वैष्णवदास कृत (सन् १९०१ की खोज रिपोर्ट में संवत् १८२९ में लिखित प्रति ) पं० उदयशंकर शास्त्री ने वैष्णवदास की टिप्पणी'भक्तमाल-बोधिनी' टीका संवत् १७८२ में लिखी गई, लिखा है। उनकी राय में वैष्णवदास दो हो गये हैं। ____३. लालदास कृत टीका-इसका रचनाकाल अनूप संस्कृत लायब्रेरी की सूची में संवत् १८६८ छपा है, पर राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में इसकी तीन प्रतियाँ संवत् १८५६, १८७० और १८९३ की लिखी हुई हैं। इसलिये इसकी रचना संवत् १८५६ के पहले की ही समझनी चाहिये । ४. वैष्णवदास और अग्रनारायणदास कृत रसबोधिनी टीका-सन् १९०४ की खोज रिपोर्ट में इसका रचना संवत् १८४४ दिया गया है। ५. भक्तोवर्शी टीका, लालजीदास-इसका विशेष विवरण नीचे दिया जा रहा है। भक्तमाल अर्थात् भक्तकल्पद्रुम ले. श्री प्रतापसिंह, सम्पादक-कालीचरण चोंरासिया गौड़, प्रकाशक-तेजकुमार प्रेस बुक डिपो, लखनऊ। सन् १९५२, बारहवीं वार, मूल्य दस रुपये-बडी साइज पृ० ४६३। इस ग्रन्थ में मंगलाचरण के बाद प्रस्तुत ग्रन्थ और इससे पहले की टीकाओं सम्बन्धी निम्नोक्त विवरण दिया गया है। "छप्पयं छन्द में नाभाजी ने भक्तमाल बनाया। यह माला भक्तजन मरिणगण से भरा है। जिसने हृदय में धारण किया तिसने भगवत को पहिचाना, ऐसी यह माला है। श्री प्रियादासजी माध्वसम्प्रदाय के वैष्णव श्री वृन्दावन में रहते थे। उन्होंने कवित्व में इस भक्तमाल की टीका बनाई। उनके पश्चात् लाला लालजीदास ने सन् ११५८ हिजरी में पारसी में प्रियादासजी के पोते वैष्णवदास के मत से तर्जुमा किया व तर्जुमे का नाम 'भक्तोर्वशो' धरा। यह रहने वाले कांधले के थे, लक्ष्मणदास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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