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राघवदास कृत भक्तमाल
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वाहि कह्यौ समयौ न परी धर, स्वास गये चलियो मन भावे । यौं सुत प्रादिक आइ परे सब, देखि सचौपन फेरि जिवावै ।।६२
च्यारि सप्रदा बिगति बरनन : मूल छपै ये च्यारि महंत चकवै रचे, जन राघो सब कौं प्रेह ॥टे०
मध्वाचारय मूल, कलपतर कला-बिथारी। . बिष्णुस्वामी बिस्व-पोष, अमृतरस सर यो भारी। रांमांनुज निह काम, राम पद पारस परसे। नीबादित निधि नृषि, चतुर चितामणि दरसे । बिधि बिधि सुत सिव सक्ति सौं, भक्ति उद्यापी येह । यह च्यारि महंत चकवै रचे, जन राघो सब कौं प्रेह ॥११४ राघो रटि गुण होत गमि, भक्ति काज भूपरि भली ॥टे० इन सिव बिरंचि लक्षमी सनकादिक, येते सब के परम गुर। अब इनके सिष सो भक्ती पुंज भरिण,कलिमल काटण धर्मधुर । महादेव को बिष्णु-स्वामि-मत,पुनि बिरंचि को मध्वाचारिय । नीबादित के सनकादिक मत, रांमांनुज के रमाजु पारिज । पति प्रणाली प्रणम्य इम, सुध संप्रदा यौं चली। राघो रटि गुरण होत गमि, भक्ति काज भू-परि भली ॥११५
अथ रामानुज संप्रदा बरनन महाबिष्णु तै बिष्णु, विष्णु के लक्ष अरधंगी। चरण पलोटे नित्ति, सदा सर्वदा रहै संगी। ता सिष बिष्वकसेन, सपुन भव' भक्ति चलाई।
सठकोप पुनि वोपदेव, हरि सूं ल्यौ लाई। मंगलमुनि श्रीनाथ सुठ, पुंडरीकाक्ष धर्म की धुजा। रांम-मिश्र अरु परांकुस, जामुन-मुनि रांमांनुजा ॥११६ इम रमा पति परताप, रहरिण रामानुज पाई। रांम-रीति परतीति, सबनि कौं नीति दिठाई। उपजे सिष सिरदार, बहतरि भये उजागर । ज्ञान-गिर के पुंज, सील सुमर्ण के सागर ।
१. भुव।
२. विश्र।
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