________________
४६ ]
राघवदास कृत भक्तमाल
असु कमल हरि अजित, कदे प्राइस न निवारै। तक्षक, करकोटक, सीस परि सेवा धारै। जन राघो रत रांम सौं, मन की प्रासा सब तर्जें। नाग अष्टकुल सुचित्र ह्व, राति-दिवस हरि कौं भजे ॥१०७ परजन्नि बृद्ध बृज गोप के, नव पुत्र नंद कौं प्रादि दे॥
सुठि सुनंद, अभिनन्द, पुनै उपनंद सु चातुर। धरानन्द, ध्र वनंद, धरम सत-गुन के पातुर । धर्मा, कर्मानंद, करम काटन अभिनंदन ।
गो-बछन के बृन्द, गोपिका हरि रंग-रंगन । कुल-मध्य कृष्ण जू अवतरे, राघव नमत सुरादि दे। परजनि बृद्ध बृज गोप के, नव पुत्र नंद कौं प्रादि दे ॥१०८ बृज के नर-नारी भक्त, लघु दोरघ सब जांचि हूं ॥ नंद, जसोदा, कृष्ण, धरा, धूनंद, कोरति दा। मधु-मंगल, बृक्षभान-कुंवरि सहचरि बिहरत दा। श्रीदांमां पुनि भोज, सुबल, अरजुन, सुबाहु गन । ग्वाल-बृद बहुतांनि, स्यांम कौं संग रमांवना । राघो मन बच काय करि, घोष निवासनि राचि हूं। बृज के नर-नारी भगत, लघु दीरघ सब जाचि हूं ॥१०६ बन-धाम संगि श्री कृष्ण के, अनुग सुचित रहबो करै ॥टे०
चंद्रहास, मधुबरत रु, रक्तक, पत्रक जेते । मधुकंठो, सुबिसाल, रसाल, सुपत्री तेते। प्रेमकंद, संदांनि, सारदा, बकुल कुसलकर ।
पयद सुद्ध मकरंद, प्रीति सूं सेवत गिरधर । राघो समयो देखि करि, चतुर इच्छत आगै धरै । बन-धांम संग श्री कृष्ण के, अनुग सुचित रहबो करै ॥११० सपत-दीप सातूं समुद्र, भक्त तिते सिर-मौर ॥टे० जंबू खार-समंद पलक्ष, चहूं फेर ईष रस । सालमिली सर मधु, सुनौं कुस घृत देव बस ।
राषा।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org