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चतुरदास कृत टीका सहित
मन बच क्रम राघो कहै, प्रेम सहित सुरिण है करण ।
तिररण ॥१०३
नसे
प्रज्ञांन ॥टे०
ये श्रष्टादस पुरांण, जे जगत मांहि तारण ये श्रष्टादस समृति भली, तिन सुनत बैष्णवी, मनुस्मृतिः, श्रात्री, जांमी, आग्री, जागिबलकि सांनी, श्री नांमी, कात्याइन, गौतमी, बसिष्टी, दाखी, श्रासतापि, सुरगुरी, परासुर, कृत मुनि प्रासा पासि उदारमति, हरत परत साधन ये श्रष्टादस समृति भली, तिन सुनत नसै श्रज्ञांन ॥ १०४ रांम सचिव नांम ही लीये, अनन्य भक्ति कौं पाई है |टे० सुमंत पुनि जैयंत सृष्ट, बिजई र सुचिर मति । राष्ट्ररबरधन चतुर, सुराष्ट्रर मैं बुधि प्रति गति ।
बहुफल ।
सधनांन' ।
सोकबरज सुख-क्षेम, सदा रुघुपति मन भाइक । परम धरम- पालक, प्रजा कौं सर्ब सुखदाइक 1 राघो से प्रसन कर, सेवति मन बच काइ है । राम सचिव नांम हि लीये, अनन्य भक्ति कौं पाई है ॥१०५ पद्म अठारह जूथपाल, तिनके सुमरूं नांम ॥
सुग्रीव, बालि, अंगद, केसरी बच्छ हनुमानां । उलका, दधिमुख, दुब्यंद, बहुत पौरष जंबुबांनां । सुभट सुषेण, मयंद, नील, नल, कुंमद, दरीमुख
गंधमादन, गवाक्ष, परणस,
सरभांग व हरिरुख ।
भीर परें भाजै नहीं,
रुघनन्दन कै
१. सध्यांन ।
हारतिकः ।
सांमृतक ।
सांखिल ।
कांम |
नांम ॥ १०६
पद्म
तिनके अठारह जूथपाल, सुमरूं * नाग प्रष्ट - कुल सुचित हूँ, राति दिवस हरि को भजे ॥ इलापत्र, मुखसहंस, अनंतकीरति निति गावै । संकु, पद्म, बासुकी, हृदै मै ताली लावै ।
स्वाभर । वैजम ।
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