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राघवदास कृत भक्तमाल
भगवत प्राज्ञा मैं रहै, ये नक्षत्र अष्टाबीस ॥
अस्वनी, भरनी, कृतका, रोहणी, मृगसर, आद्रा। पुनरबसु, अरु पुक्ष, असलेखा, मघा, सु सादा। पुरबा-उतरा-फालगुनी, पुनि, हस्त, सु चित्रा। स्वात, बिसावा, अनुराधा, जेष्टा अतिमित्रा। मूल, पूरबाषाड र उतराषाड, अभींच हद ।
श्रवन, धनिष्टा, सतबिषा, पूरबा-भाद्रपद । उतरा-भाद्रपद, रेवती, सर्व राघो सुमरै ईस । भगवत प्राज्ञा मैं हैं, ये नक्षत्र अष्टाबीस ॥१०० जन राघो रचनां राम की, ते ते प्रणउं पंक्ष गुर ॥टे०
गरुड़ासरण गोविंद, अरक के अरग'-सारथी। हंस दसा' सारस, हेत हमाइ प्रारथी। चाहरण उत्म चकोर, सूवा संगि हरि हरि करि है।
मोर कंठ-कोकिला, पीव पीव चात्रिक ठरि है। काक-भुसंड रटि गीध, निधि जलतटांग उपगार उर। जन राघव रचनां राम को, ये ते प्ररणऊं पंक्ष गुर ॥१०१ राम कृपा राघो कहै, इतने पसुपती ग्रवा ॥टे० कांमदुघा नंदनी, कामनां पूरण करि हैं। कपिला बड़ी कृपाल, सुरह लांगुल सिर ढरि है। औरापति गज इन्द्र, नंदीसुर सिव को बाहन । गौरी-बाहन स्यंघ, राम बिमुखन डरपावन । मृग चंद बाहन भलौ, आदित के उत्तीश्रवा । रांम कृपा राघौ कहैं, इतने पसुपती वा ॥१०२ ये अष्टादस पुरांरण, जे जगत मांहि तारण तिरण ॥टे० बिष्ण, भागवत, मीन, बराह, कूरम, बांवन धर। सिव, सकंद, लिंग, पदम, भवक्ष, बैबरत कथाबर । ब्रह्म, नारदी, अगनि, गरुड़, मारकंड, ब्रह्म डा। धरम थापि अधरम मारि, करि है सतखंडा।
१.अरुण ।
२. दरसा।
३. सरह ।
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