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चतुरदास कृत टीका सहित
राघो कहि राम हरिचंद नहीं हार धर्म, भेड़न को मैं न मानै स्यंघ को ज्यूं छावरौ ॥१t
टीका [मूल] मनहर चाले वेग रिष बिस्वामित्र बैठे वन प्राइ, छंद
सूर भयो सूर-देव बाग खोदि डारयौ है। माली जाइ कही हरिचंद चढ़ि पायौ तब,
सूर भग्यौ गेल लग्यौ कहै अब मारयौ है । दीखबे सौं रह्यौ रिष देखि बैठि गयो सीस,
नाइ करि कह्यौ मम चलौ यौँ उचारचौ है । संकलप लेहु सर्व राज हम देहु तीन,
लाख फिरि येहु दये सत नहीं हारयौ है ॥६२ खोसि लीयो घोरा पाप नृप कौं पयादौ कीयौ,
कांटा धूप लगै लोग सुनि और ल्याइये। सर्ब ही हमारे ये तो ल्यावो तीन लाख हारो,
भूप रुहितास रांनी कासीपुरी पाइये। सीस घास लीयें ठाढ़े बेस्यां कही नारि देहु,
नकटी बखानी कीस नांक काटि जाइये। अगनि सुश्रमां रिष रांनी रुहितास लीये,
दीये ड्योढ़ लाख होयौ फटे बिछुराइये ॥६३ मांगत रुपईया डेढ़ लाख रिष राजा पासि,
बचन कौं तजौ प्रजों नहीं बेगि दीजिये। अब देऊ झफड़ा सु डौम आयो ताही छिन,
म्रहट सभारौ हां जू तौ तौ गिनि लीजिये । रांनी रुहितास करै अगनि सुश्रमां सेव, - ईंधन वुहारी लेय जल ल्याइ भीजिये। सुत ल्याव फल-फूल पूजन करन रिष,
येक दिनां चढ्यो द्रुम अह काटि खीजिये ॥६४ वालां कही माता सू सरप डस्यौ रुहितास,
रोवत गई है संग सुत जहां परयौ है। टिप्पणी : सम्वत् १८८६ को प्रति में इसके बाद के ६ मनहर छंद नहीं हैं।
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