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________________ ३६ ] बलि बोझांवली की टीका [ मूल ] इंदव भाग बड़े बलि के ग्रहै बांवन, श्रावत ही कोयौ सबद उचारा । छंद राज गऊ धन धांम कन्यां असु देव करौ इनकौं अंगीकारा । मनहर छद राघवदास कृत भक्तमाल भाव सौं भूमि दे पैंड प्रठिक, तामधि ह्व बिश्राम हमारा । राघो त्रिलोक त्रिपैंड कीये जिन, आप श्रमांप बढ्यौ करतारा ॥८८ Part राजा बलि कसि इंद्र सौ कीन्ही बिहसि, रामजी कहत हसि अर्ध-पेंड श्राप दे । बोले बलि बावली धनि प्रभु कीन्ही भली, मन की पजोई रली लीजै पैंड माप दे । जै जै जगदीस कीन्हों प्रापनों बतायौ चीन्हौ, मेरौ निज रूप भूप रहगो श्राप दे । बलि के दरबार प्रतिहार प्रभू प्रांननांथ, राघो जोरे हाथ यौं जग्यासी ठाढौ जाप दे ॥८ Jain Educationa International हरिचंद को टीका [ मूल | लोकपाल सारे कुलि देवता तेतीस कोड़ि ठाढ़े कर जोरि हाॅ कें कही करतार सूं । हरिचंद कौ देखि सत हलचल हमारी मत, कीजीये इलाज प्रभु श्राज याही बार सूं । तब हरि कृपा करी सर्ब की दिलासा धरी, नारद बुलाइ लीये बूझे है बिचार सूं । राघो कही रांमजी नैं रिष पिषि पृथी परि, हरिचंद सौ बिस्वामित्र अहंकार सूं ॥० राघो रिष दीयो रोइ मोहि तौ कठिन दोइ, यत तुम साहिब उत हूं दास रावरौ । तब बोलं बिष्णजी बिसाल नैन नाराइन, रिष मेरौ कीयो देखि हूं तो नहीं बावरौ । भगतबछल मेरौ बिड़द गावै साध बेद, संत मोहि प्यारे से मात पिता डावरौ । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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