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बलि बोझांवली की टीका [ मूल ]
इंदव भाग बड़े बलि के ग्रहै बांवन, श्रावत ही कोयौ सबद उचारा । छंद राज गऊ धन धांम कन्यां असु देव करौ इनकौं अंगीकारा ।
मनहर
छद
राघवदास कृत भक्तमाल
भाव सौं भूमि दे पैंड प्रठिक, तामधि ह्व बिश्राम हमारा । राघो त्रिलोक त्रिपैंड कीये जिन, आप श्रमांप बढ्यौ करतारा ॥८८
Part राजा बलि कसि इंद्र सौ कीन्ही बिहसि,
रामजी कहत हसि अर्ध-पेंड श्राप दे । बोले बलि बावली धनि प्रभु कीन्ही भली,
मन की पजोई रली लीजै पैंड माप दे । जै जै जगदीस कीन्हों प्रापनों बतायौ चीन्हौ,
मेरौ निज रूप भूप रहगो श्राप दे । बलि के दरबार प्रतिहार प्रभू प्रांननांथ,
राघो जोरे हाथ यौं जग्यासी ठाढौ जाप दे ॥८
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हरिचंद को टीका [ मूल |
लोकपाल सारे कुलि देवता तेतीस कोड़ि
ठाढ़े कर जोरि हाॅ कें कही करतार सूं । हरिचंद कौ देखि सत हलचल हमारी मत, कीजीये इलाज प्रभु श्राज याही बार सूं । तब हरि कृपा करी सर्ब की दिलासा धरी,
नारद बुलाइ लीये बूझे है बिचार सूं । राघो कही रांमजी नैं रिष पिषि पृथी परि,
हरिचंद सौ बिस्वामित्र अहंकार सूं ॥० राघो रिष दीयो रोइ मोहि तौ कठिन दोइ,
यत तुम साहिब उत हूं दास रावरौ । तब बोलं बिष्णजी बिसाल नैन नाराइन,
रिष मेरौ कीयो देखि हूं तो नहीं बावरौ । भगतबछल मेरौ बिड़द गावै साध बेद, संत मोहि प्यारे से मात पिता डावरौ ।
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