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राघवदास कृत भक्तमाल
देखि छाती फटी ले उठाइ पाई मरहट,
लकरी बरै' न मेह बखै नहीं जरयौ है । ●वां लखि प्रायो हरिचंद मांगै भूमि-भाड़ो,
दयो फारि चीर प्राधौ तब लैक टरचौ है। गंगा मैं बहाइ आइ पाश्रम मैं रात ढिग,
चील हार ल्याइ रांनी गरै मांझ घरचौ है ॥६५ कासी के राजा-चर देख्यौ हार गर-मांझ,
___ मार धर बार-बार ल्याये भूप पास ही। जावो मरहट कही काटौ सिर सट फेरि,
चल नहीं बट झट-पट करौ नास ही। सुनौं इक गाथ असि देहु टैल वाकै हाथ,
छेर्दै मम माथ दई नाथ लेर बास ही। बिरम्हा बिसन सिव गौ कर मांगि बर,
उर नहीं चाहि कलि करो मति त्रास ही ॥९६ देवतांन कीयो छल सूर भयो देव भल,
मैं हूं बिस्वामित्र रिष बैठो बन मांहि जो। . अगनि सुश्रमां अज झपड़ा सो जमराज,
सक्ति भई बेस्यां पुनि कट्यौ नांक ताहि जो। सुरपति श्रप जानौं चील हूं रंभा कौं मानौं,
___ कासी-नृप देव बानौं सर्व ही को प्राहि जो। गंगा जू उलटी बहि रुहितास प्रायो सही,
___राज दयो महीराजा रांनी मुक्ति जाहि जो ॥६७ जै जयंती-सुत जगतगुर, राघो दंडवत निति नमो ॥टे० कबि हरि हरि-रत अंतरीक्ष, नहीं प्रभु सूं अंतर । चमस प्रवुध परबीरण, करहि धुनि ध्यान निरंतर । कर भांजन पिपलाइन, द्रुमल रहै राति दिवस रत ।
आब्रिहोत्र प्रखंड नृषि, नवन कोइक मत । नव जोगेसुर नांव भरिण, मिटै सरम संकट समो। जै जयंती-सुत जगतगुर, राघो दंडवत निति नमो ॥६८
१बर।
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