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राघवदास कृत भक्तमाल
मूल छपै चरन-कवल मकरंद कौं, जनमांतर मांगत रहौं ॥टे.
सति-बरत सगर मिथलेस, भरथ हरिचंद रघुगरण । प्राचीन ब्रही इष्वाक भगीरथ, सिवर सुदरसरण। बालमीक दधीच बींझावलि, सुरथ सुधन्वा ।
रुकमांगद रिभु अल, अमूरति बैबस-मन्वा । सिषर ताम्रधुज मोरधुज, अलरक की महिमा कहौं । चरन-कवल मकरंद कौं, जनमांतर जाचत रहूं ॥८२
टीका इंदव धार न देह नहीं अपसोचहु, साधन की पद रेन सुहावै। छद सत्यव्रतादि कथा जग जानत, द्वै बलमीक कथा मन भावै ।
भीलन साथि भये रिष भीलहि, राम-चरित्र अडब्ब बनावै। गावत ताहि सबै सुर नागर, कान सुनेंत हियो भरि आवै ॥७२
दूजा बालमीक की टोका [मूल] मनहर पांडुन की भक्ति जिहाज रूप कीनी जग,
बिप्रन द्वादस कोड़ि ज्यों'ये निति नेम सौं। कनक के थार रु कटोरो झारी कनक की,
भोजन छपन-भोग बीस दीन्हौं हेम सौं। . राजा करै टहल-महल बर बाई बोर२,
बड़े बड़े ब्रह्मरिष वेद पढे प्रेम सौं। राघो कहै जन बिन ज्यां ये जज्ञ पूरौ नाहि,
साध बिन कैसै संख बाजे सुख-क्षेम सौं ॥८३ हंसाल पंड-सुत पंच कर जोड़ि कही कृष्ण सूं,
देव संदेह मम करौ दूरौ। बिप्र दस कोड़ि रिष-राइ राजा घणां,
जीमियां तऊ जज्ञ रह्यौ ऊरौ। जब कृष्ण कृपाल ह कही जिम की तिम,
भक्त भगवंत बिन ह न पूरौ ।
१. ज्यांये। २. चोर छड़े वोर ।
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