SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुरदास कृत टीका सहित [ ३३ मोरधुज की टोका [मूल] मनहर मोरधुज तामरधुज हंसधुज सिखरधुज, नीलधुज ध्रमधुज' रतिधुज गनि है। ताकी रांगों मगन मंदालसा मुकति भई, वैसे सुत च्यारि कोई जननी न जनि है। हरिचंद सत त्रियलोक मैं सराहियत, संग रुहितास मदनावती जु नि है। सिवर कपोत बलि' रंतदेव उछ२ बृति, राघो जाके भूरि भाग जोयां' जस भनि है ॥७६ छपै इम मन बच क्रम रत राम सौं, जन राघौ कथत कबीस ॥टे० दीरघ सुध सुबाहु गरक, प्रासन जित गादी । जाकै सत्रु न कोई, सत्र मरदन सतवादी। अति बिगि बिमन बिक्रांत, जुगति जोगी उर्धरेता। अलरक अग है अजीत, सूर सर्बज्ञ ततबेता। मात सुमगन मंदालसा, तात है तत्वनवीस । इम मन बच क्रम रत रांम सूं, जन राघो कथत कबीस ॥८० हरि हृदै जिनकै रहै, तिन पद पराग चाहूं सदा ॥टे० प्रेय-बत जोगेसुर पृथु, श्रुतिदेव अंग पुनि । परचेता मुचकंद सूत, सौनक प्रीक्षत सुनि । ४सत्यरूपा ५त्रियसुता, मंदालस ध्रव की माता। जगपतनी बृज-बधू, कृष्ण बसि कीये बिख्याता। नरनारी हरि भक्त जो, मैं नहीं बिसरत कदा । हरि हृदै जिनकै रहै, तिन पद पराग चाहूं सदा ॥८१ टोका इदव जा जन की पद रेंन अभूषन, अंग करौं हरि हैं उर जाकै । छद स्वाद निपुन्न महाकबि आदि, कहै श्रुति देव बड़ी धर्म ताकै। संत लये घरि जात भये हरि, फेरत चादरि प्रेम सुवाकै । साधन कौं परनाम न आदर, आप कही हम सूं बड़ पाकै ॥७१ १. कपोत छलि। २. उच्छा । ३. जाया। ४. देवहु । ५. त्रय। ६. प्राकूती। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy