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राघवदास कृत भक्तमाल
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नाथ कही जन हाथी बिकानौं, सो मोहमरद बसेष सुनायो।
राघो कोयो रिष नारद नै छल, स्यंघ पैं साध को पुत्र मरायौ ॥७४ हंसाल नृप-कुमार मार दरबार नारद गये,
दास राघो कही सोग-बांणी । रावलड़ा भवन सूं गवन करि छोकरी,
कलस ले कूवा कू चली पारणी। देखि रिष दौरि करि जोरि पाइन परी,
रिष तहां कुवर की मृति ठांरगी। देव-दासी कहै कौंन काको सगो,
नापिका नांव संजोग जाणीं ॥७५ चले रिष अगम नौं प्रांरिण रांणी मिली,
पुत्र के मृत की कही गाथा। प्रहं जानौं नहीं कहां सुत अवतरयौ,
__ कहां अब देह तजि गयो नाथा । कौंन की बसत कहौ सोग काकौं करूं,
लेख की वात प्रलेख हाथा। दास राघो कही स्वांन दिज की कथा,
रहे रिष ठगे से धूंरिण माथा ॥७६ नृप के कुंवर की नारि नारद मिली,
कही रिष अजि पति मूवो तेरौ। कुलबधू कही करतार की बसत है,
कौंन की नारि पति कौंन केरौ । अब सलता प्रसंग द्वार द्वै मिलि चले,
दई गति बीछुरे कहा बस मेरौ । दास राघौ कहै देवजी लेहु कछू,
प्रदुखी दुखत है प्राण तेरौ ॥७७ इंदव रिष नारद प्राप कही नृप सौं, सुत तेरौ सिकार मैं स्यंघ नै मारयौ। छद भूप कही भगवंत रजा रिण, सनबंधी प्रांरणी बस्यौं र सिधारचौ।
देव सुनौं दृष्टांत कहौं सुत, बैसि कुंभार हीयो धुनि हारयो । राघो कहै इतनी सुनि के रिष, आयो प्रकास कुटंब सूं तारयौ ॥७८
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