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चनुरदास कृत टीका सहित
[ ३१ सु रतिदेव बहुलास, पास मन को सब पूरी। मित्र सुदामां जानि कीयौ, सब ही दुख दूरी। सोक समद तें काढ़ि के, कीये महाजन मुक्ति रे। राघो सूके काठ सब, होत अबै सतसंग हरे ॥७० नमो सूत बक्तास नमो, रिष सहंस अठ्यासी । सुरणी भागौत पुराण भक्ति, उर मांहि उपासी। चटिड़ा द्वादस कोड़ि, राम सुमर्त कुलि उधरे।
जन प्रहलाद प्रसाद, पाय संगति सौं सुधरे। साध सती अरु सूरिवां, हीरा खड़ गरू बाज । राघो अंस दधीच कौ, कीयो तिहूं-पुर राज ॥७१ जन राघो राम अरीझ है, परि रीझत है सर्बस दीयें ॥
उछ बृति जु सिवर सुदरसन, हरिचंद सत गहि । स्यार सेठ बलत्री' ईषण, जित रंतदेव लहि । करन बल्य मोहमरद, मोरध्वज सेद बेद बन । परबत कुंडल धृत बार, मुखी च्यारि मुक्ति भन। ब्याधि कपोत कपोती कपिला,जल-तटांग उपगार जल।
तुलाधार इक सुता साह की, भोज बिक्रमांजीत बीरबल। ये बड़ सती सताई सौं, जपि उधरे उत्म कृत कीये । जन राघो रांम अरीझ है, परि रीझत है सर्बस दोये ॥७२
मोहमरद को टोका [मूल] अरिल रिष नारद बैकुंठ, गये हरि पास है। छपै प्रष्न करी नहीं मोह, इसौ कोइ दास है।
__ मोहमरद भरिण भूप, रूप रांगी सिरै।
ताके सुत को घरणि, बरणि बकता तिरै। नारद सौं निरवेद, बिष्णजी विधि कही।
राघो भेद न भ्रांति, भगत भगवंत सही ॥७३ इंदव ध्यान घरचौ जन को जगदीसु र, ताही समैं रिष नारद प्रायो। छद तारि छुटी तबहि लगे बूझन, काहि भजौ हरि को मन भायौ।
१. बलह।
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