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चतुरदास कृत टोका सहित
[ २९ कोये लावन-रूप रिझावन कौं, सुख के मुख बाइक है जननी कौं।
आगि कौं लागि कहा करै मांछर, राघौ कहै सत सूर अनी कौ ॥६० मनहर द्वादस अबद राख्यौ सबद पिता कौ पण,
लखि सम लक्षमन दास रामचन्द्र कौ। फल जेते फूल पात राखे है हजूरि तात,
आप न भक्षरण कीन्हौं पाप सेती अंद्र को। रांवन पलटि भेख सीया हरि लै गयौ,
सु बिपुन मैं निपुन निवारयौ दुख-बंध को। राघौ कहै पदम अठार कपि रहे जपि,
तहां लक्षमन सिर छेदयौ दसकंध कौ ॥६१ इंदव राम के काम सरे सब हो, जब ही हनुमंत लोयो हसि बीरो। छद लंक प्रजारि सीया को संदेस, ले प्राइ दई रघुनाथ हि धोरौ।
रांम चढ़े जिहि जाम हनूं संगि, जाइ परे दल सागर तीरौ। राघौ कहै जंग जोति रमापति, लंक विभीषण कौं दई थीरौ ॥६२ हा हा हनूं कीयो काम घनौं, रजनी बिचि सैल समूह ले प्रायो। मग दैत कीये छल छंद जिते, सुत ते सब जीति के प्रातुर धायो। मुरछे लक्ष बोर से धीर धरा धनि, सेवग प्रात ही भ्रात जिवायो। राघो कहै रघुनाथ के साथ, सदा हनुमंत कीयो मन भायो ॥६३ इंद ज्यौं जिद की जीवनि गोरख, ग्यांन घटा बरख्यौं घट धारी। नृप निन्यारणवै कोड़ि कोये सिध, प्रातम और अनंतन तारी। बिचरै तिहूं लोक नहीं कहूं रोक हो, माया कहा बपुरी पचिहारी।
स्वाद न सप्रस यौँ रह्यौ अप्रस, राघो कहै मनसा मनजारी ॥६४ मनहर चले हैं अजोध्या छाडि रामजी पिता के काज,
भरथ न कीन्हों राज राखी सिर पावरी । धृग यह राज तज्यौ नाज रघुनाथ काज,
काहे कौं विछोहे भ्रात मात मेरी बावरी । आसन अवनि खनि नोवै सैन कीनौं जिन,
रोवत बिवोग मनि रहै तन तावरी।
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