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________________ २८ ] राघवदास कृत भक्तमाल प्रथम प्रादेस है गनेस गवरी के सुत, जाचे जाहि बंदीजन विद्या को निधान है। चतुर निगम नव द्वादस पुरांन पढ़े, जांने दस च्यारि छह जेतौ गुनगांन है। लक्षन बतीस जगदीस के सहस्र-नांम, पाठ करै आठौं जाम ईश्रज प्रासांन है। राघो कहै बीनऊं बिनाइक बिद्या के गुर, मांनं नर-नारि-सुर जानन को जान है ॥५६ लक्ष लक्षमनां कुमार, राम के कामहि लाइक । हेटि हेटि हनुमंत, प्रणम्य रघुपति के पाइक । गरुड़ प्रतुल-बल बरणि, बिष्ण बिधनां को बाहन । कत्र स्यांम सिव सुवन, मदन-जित मन अवगाहन । व्यास पुत्र सुखदेव जपि, गोरख ज्ञान गिरापती। राति दिवस रत रांम सौं, राघो येते षट जती ॥५७ मनहर गरुड़ गोपालजी को प्राग्याकारी आठौं जांम, सारे हैं अनंत काम असौ स्वामी कारजी। पल मैं सकल ब्रह्मण्ड खंड प्रावै फिरि, बैठत बैकुंठ-नाथ चलत अपारजी। तीन्यू गुन जीति गही नीति जु नृति पद, छाड़े विष भोग रोग साध्यौ जोग सारजी। खगपति अति भजनीक है. रहत दृढ़, राघो कहै राति दिन रटत रंकारजी ॥५८ इंदव जाजली मांन महास्यंभू को सुत, देखौ मतो कत्र स्यांम जती को। छंद नारी जिती जननी करि देखत, रूप सबै प्यंड पारबती को। सील गह्यौ मनसा मन जीति के, भोग न भावत जोग है नोकौ । राघो लगी धुनि ध्यान टरै नहीं, जाप जपै हरि प्रांनपति कौ ॥५६ कसि देख्यौ महा कस क्यों न कहूं, सुख के मुख नैंकन भेद दुनी को। श्रुग की पतिनी सजि के उतनी, चलि पाई जहां बन-बास मुनी को। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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