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चतुरदास कृत टीका सहित
[ २७ नवस निवासी नदी तेरी जीभ जग मध्य,
सप्त साइर उर गावै बाग बागणी। तेरौ बल ब्रह्मण्ड पचीस लग पूरै जल,
अकल अजोत प्रलै काल पौढ़ौ है धरणी । काली गहली बीनती कछूक बनि पाई मो पैं,
- राघो कही सुलप तुम्हारी सोभा है घणी ॥५२ कसिब सुवन तेरे ऊगत' ये तो प्रताप,
रजनी के पाप गुर जाप सुनि सटके। जल सुचि दांन असनांन षट-क्रम धर्म,
खोलत कपाट भांरण भूप श्रब घटके । मुदित सकल बन गऊ उठि लगी तिन,
रांम जन रांम काम पाठ पूजा अटके । भगति करत भगवंतजी की भासकर,
राघो रटि सुमरिये भाव ये सुभटके ॥५३ बड़ी कला करतार, कीयो ससि सू श्रब थोकं । रजनी मंडन रतन, सुधा सरवैत२ श्रब लोकं । सीतल मिष्ट मयंक, चराचर मैं संचार है। रस गोरस अन सकल, चंद सरजीवत करि है। राघो रुचि रांम हि रट, ससि ब्रह्मण्ड-प्यंड मधि मुदित । पूरणवासी प्रष्ण अति, बित घटियां बाको उदित ॥५४
अपरस उतम उतंग जाकै सोभै प्रति, छंद
बृचि की सुताबखारणों बागी ब्रह्मचारणी। सरस्वती सरल जु सलाघा कीये प्रष्ण ह,
___ जब ही पाराध कोऊ ह है काज कारणी। कोमल कुमारजा है न्यारी निकलंक कन्या,
अतुल सकति सु सुफल तत-धारणी। राघो कहै रुति सूं रहैत तन तेजपुंज,
प्रसन-बदन हरि हित पैज पारणी ॥५५
छप
मनहर
१. ऊगन येता। २. सुधा सरवत ।
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