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मनहर
छद
श्रात्म उपगारी । भक्ति भक्त भगवंत जै । रावो
धरमपाल रक्षपाल, नमो द्रिगपाल नमो सूर सापुरस, नमो कबि चतुर नमो सती सरबज्ञ, नमो धाता नमो इंद्रजल भोमि, नमो नमो जनत जननी सक्ति, नमो जती जोगे सुरां, दासन- दास है ॥४८ नमो सुबरण कुबेर, नमो धर्मराइ मन्वंतर । चित्रगुप्त गणपति, नमो बागी महामंतर | नमो सप्तरिष अनंत रिष, नमो त्रिभवन तत-बेता । बालखल्य रिष प्रष्ट, वसु नृप नवखंड जेता । बित्र बेद गंगा गऊ, सुमरि सकल सुक्रत सिलो। राघो जीवन-मुक्ति मत, सब दरसन सू मिलि चलौ ॥४६ नमो इंद्र नरचंद सकल सुरपति सत्य जल,
करि सींचौ थल बिपति निवारणा । जीव की जीवनि चतुरासी लक्ष लगी तोहि,
पीव पीव टेरै जीव लेत निति वाररणां । सची के नाइक मैंना उरबसी रंभा के कंत,
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राघवदास कृत भक्तमात
बखांणों ।
सुजांणौं ।
धर्म-धारी ।
लीजियें न अंत नव-खंड निस तारणां । राघो गज रापति कामधेन कलपबृक्ष,
प्रष्ट-सिधि नव-निधि रहै जाऊँ द्वाररणां ॥५० नमो दिव्य देवता कुबेर कुलि श्राज्ञाकारी,
अब गति नांथ अबिनासी कौ भंडारी है । मायाधारी मूरति अनंत कोटि रबि छबि,
साहिब की साहिबी सकति प्रति धारी है । रिधि सिधि अरब खरब जग जानें श्रव,
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हरि जी हजुरि राखि सौंपी ताहि सारी है । राघो येती सहित रहत रत रांम जी सौं,
धनि सो धनादि नृप सोभै प्रति भारी है ॥५१ नमो बररण देवता बनाइ कहूं कहां लग,
तेरे
पग पूजत पताल नाग नागरणी ।
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