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________________ चतुरदास कृत टीका सहित [ २५ तातें मुनि मृगी-पेट प्राइ के जनम लीयो, दस ब्रष मृग रह्यौ माहै बृति धुनि की। तीसरै जनम निज नेष्टीक बिप्र भयो, देह ते निसंक नहीं संक पाप पुनि की। राघो रघु नृपति सूं बोले मुनि मौनि तजि, जान्यौं जड़ भर्थ अर्थ मोक्ष भई उनि की ॥४४ जनकजी को टोका : [मूल] मनहर करम-हरण कबि बरतमान भूत भव्य, छद आये नव जोगेसुर जीवन जनक के। नाहरी के दूध सम नृवृती धरम धार, छोज न लगार राखि पातर कनक के। राज तजि, मोहं तजि,सुद्ध होह हरि नामं भजि, कंचन छुयें लोह पारस तनक के। राघो रह्यौ थकित थिराऊ धुनि ध्यान लगि, कीट गही मीट मारयौ भुंगी की भुंनक के ॥४५ माया माधि मुकति बहतरि जनक भये, चित्र के से दीप रहे धारचौ धर्म समता। सुख-दुख रहत गहत सतसंग सार, तजे हैं बिकार न काहू सूं मोह ममता। असे नग जनम जतन सेती जीति गयो, बंदगी मैं बिघन न पारी कहौं कमता। श्रवन मनन मन बच क्रम धर्म करि, राघो असे राज में रिझायौ राम रमता ॥४६ भृगु मरीच बासिष्ट, पुलस्त पुलह क्रतु अंगिरा। अगस्त चिवन सौंनक, सहंस अठ्यासी सगरा। गौतम प्रग सौभरी रिचिक-सृगी समिक गुर। बुगदालिम जमदगनि, जवलि परबत पारासुर । बिस्वामित्र माडीफ कन्व, बामदेव सुख ब्यास पखि । दरबासा अत्रे अस्ति. देवल राघो ब्रह्मरिष ॥४७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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