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कंचण-तणु चालीस - धणुच्चउ जासु सीसु उसिणीस - सुपच्चलु सल - सुरिंदिहि जसु किउ मज्जणु वारिय-भव - जल - रासि - निमज्जणु गभि वि असिवह संति जणंतहँ नामु संति जं जिण विक्खायउ कुमुय-कमल-वाणि जेम महासरु तिम्व चकित्त- जिणत्तण-लक्खण पुन्नह परम कोडि फलु लोयहु जिन इय पडण नाइ निमित्तिण जिव रेहइ सरउ विससि - सहियउ जिम्व महु-कोइल - रवि मायंदू कुमर - भावि मंडल- चक्कित्तणि वरिस गमंतइ सय लावत्थहँ सयलुवि भारह - वरिसु पयक्खिणि नह-मंडलु अइ-सिग्धु अविग्धिण अखलिय- निखिल - चरण - परिपालण नव- निहाण संपत्ति विनम्व चउदस - विह जं जीव सुपालिय वद्ध-मउड-वर- राय निसेवय सोलस जक्ख - सहस जसु किंकर अमर-तरंगिण सिंधु वि देवय रज्ज - महातरु सुकय- सुकंद हँ आलवालु बत्तीस - सहस्सिउ चुलसी चुलसी लक्ख दलालह छणवइ कोडि पयाइ दलंकिय
चउदस सोलस वीस दसुत्तइ सहस दलावलि कमि संवाह १६. १ कमलि.
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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय
भरणिहि धम्म- धुरंधरु सच्चउ । सिरिवच्छंकिउ मह वच्छत्थल ॥१३ मेरु- सिहरि कय- पाव - पमज्जणु । सुरह न पुन्नहँ तह - विकिमज्जणु ॥१४ भुवणि वि तेयवंत अहरं तह । सुचरिउ कित्ति - निमित्त तमाय ॥ १५ खीर - रयण - भरि जेम नईसरु | तसु संपुन्नु सरीरु वियखण ॥ १६ तिहुयणि विम अन्नु ( 3 ) पलोयह । चक्कि - लच्छि सहु भइय जिणत्तिण ॥ १७ जह व संखु वर - खीरिण भरियउ | तिम्व चक्कित्तणि संति - जिणंदू ॥१८ जिण पणवीस सहस्स जइत्तणि । पयडिउ समतुल मणु मह - सत्तहँ ॥ १९ भमिवि पसाहिउ जिम्व नव दिणर्माण । अव सुतेयह किमिह वियपि ॥ २० फल - पज्जंतु कु सक्कइ जाणण । नव- नियाण- वज्जण - फलु सिज्झइ ॥ २१ विमल रयण तिणि तित्तिय पाविय । जे पडिबिंब महिदिय देवय ॥२२ वसि अखंड छक्खंड भरह - घर | चमर-धारि - रुविण जसु सेवय ॥ २३ हिमगिरि - परिमिय धर - मह - खंडहँ । जणवउ सायर-सलिल - समस्सिउ ॥२४ हय-गय-रह सेणंग विसालह । विटिम जासु नह चारि पसंसि ॥ २५ नव नव दो चउवीस दु चत्तहूँ । खेडागर पुण दोणमुहोहहँ || २६
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