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१२. शांतिनाथदेव - रास
[ कर्ता : लक्ष्मीतिलक-गणि रचना समय: ई.स.१३ वीं शताब्दी ले. स. ई. २४३०]
संति - जिणेसर-चरण-कमलु कमलह आवासू । उत्तंसिय- निय- उत्तमंग सुरहिय-दस आसू ॥ सवण - महूसवु चरिउ तासु विरइसु संखेवी । नाच भविहु भाव- सारु सिंगारु करेवी ॥ १ हथिनागपुर कुरु - मंडल - मंडणू । अच्चन्भूय जसु रिद्धि पिक्खि संकिउ संकंदिणु ॥ धाइ निय-पुरि सरइ तत्थ संभंतु संभालइ । घर - देउल - आराम-देव-देवी- अट्टालय ॥२ जय-सिरि-पंचालिय-रवण्ण- सोवन्न - सुदेहह । जसु अ [च] ब्य थंभ चारु सूरिम - कुल - गेहह || सहहि लहहि जगि रेह सेह विससेण - नरेसरु । तसु जसु पसरि सरंति सग्गि विम्हियउ सुरेसर ॥ ३
तसु राणी सिरि-अयरदेवि वर - सील-संभूसिय । जिणि रूविणि रइ लच्छि गोरि इंदाणिय दूसिय ॥ चंदह चंदिम जीय कंति - पन्भारिण ल्हूसिय । जीइ मुहिणि कमलम्मि धुलि लल्लिय किर रूसिय ॥४ तासु उयरि अवय[२४६B]रिय देव सव्बट्ट - विमाणह । भद्दव-सामल-सत्तमीइ सव्वट्ट - विमाह ॥
चक्कि - तित्थकर - लच्छि-तणा वद्धावा आविय । चउदस सुमिणइ दुगुण-कंति देवी संभाविय ॥५ डिंब - डमर - उड्डमर - मारि वित्थरिय अंधारय । गन्धंतरि व सामि सूरु सहसत्ति सिंहारइ || जिणि सिरि चक्क सिरी वि नूण सामहि उक्कंठिय । तायह घरि बहुविह- निहाण - मिस आविवि संठिय ॥६
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जिट्ठह सामल-तेर सिहि । मृगलछण तिहुयण-लिलउ ॥७
अयराए विहि उप्पन्न सामिउ ए [ सामल-वन्न]
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