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प्राचीन गुर्जर काव्य संचयः कटि-तटि सोहह मेखल वारू आनन धरए शशि-अणुकारू....
गति गय मानइ हारे ॥१५ बोलइ वाणी अमीयहँ मुहरी नदीयह सामी पाहईं. गुहरी .
दूरिहि कीय सुर-नारे ॥ यदु-कुल-कैरव-कानन-चाँद . ईम करताँ नेमि-जिणंद
पुहतउ निलय-दूयारे ॥१६ वाडइ देखीय जीव वन-चार पूछ। सारथि-कन्ह तिणि वार
मूरतिवंतउ धम्म ॥ 'एहे. जीवे किसिउँ करेसिइँ' 'सामी आज ए सवि मरिसिइँ
गुरुव होसिइ तम्ह' ॥१७ 'पाणि-ग्रहणिइ काज न राज अम्ह-कारणि होइ पशु-वध आज
पडियइ ईणि संसारे ॥ तक्खणि लोक सहू खलभलिउ जिणि क्षिणि सामी पाछउ वलीउ
गईउ गढ गिरिनारे ॥१८ कमला सायर-वीचि-समान प्रभुता विज्ज-तणउँ उपमान
___ जीवीय नइ किरि वेगो ॥ यूवन संध्या राग-सरीखउँ एउ संसार असार जि देखउँ'
चिंतइ मनि संवेगो ॥१९ धण मणि माणिक रयण-भंडार कमनिय कंचण बहु पट्ट सार
__ दियइ संवत्सर दान ॥ किमइ न पडई भव-मइ फाँडइ राज-ऋद्धि घर घरणी छाँडइ
माँडइ मेल्हइ मान ॥२० यहु जन मानस-माहि आलोची पंच मुष्टि शिरु पाछइ लोची
लीघउ संजम रंगे ॥ देवहँ दानव-मानव-शव प्रणम. नेमि-जिणेसर-पाय
रहीउ ऊजिलि(ल)-मुंगे ॥२१ बावीसमउ जिन-प्रधान... अनुपम हूउँ केवल-ज्ञान
पुहुतउ सिद्धि िनाहो ॥ एह जि सही ए. रासउ गाई रोग सोग दुख दालिद जाई
हुइ मन-वंछित लाहो ।। २२
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