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गौतमस्वामी रास पर परवस परता काँइ कीजइँ देस-देसंतर काँइँ भमीजइ
कवणु काजु आयासु करे । प्रह ऊठी गोयमु सँमरीजइ काजु समग्गू ततक्षण सीझइ
नव निहि विलसइँ ताहँ घरे ॥६२ चऊदह सय बारोत्तर बरसहि गोयम-गणहर-केवल-दिवसिहि
किउँ कवित्तु उपगार-परो। आदिहि मंगल एहु भणीजइ परवि महोछवि पहिलउँ दीजइँ
रिद्धि-वृद्धि-कल्याण-करो* ॥६३
* अंतः इति श्रीगौतमस्वामीरासः समाप्तः ॥ श्रीस्तंभतीर्थविहारे श्रीविनयप्रभोपाध्यायैः कृतः ॥
॥ शुभमस्तु ॥
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