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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय
सिरि केवल-नाणि पुण बार वरिस तिहूयणि नमंसिय ॥ रायग्गहि-नयरिहि ठिय बाणवइ वरिसाउ । सामिय-गोयम गुण-निलउ भूसइ सिवपुरि-ठाउ ॥५५
भास जिम सहकारिहि कोयल-टहकउ जिम कुसुमह वनि परिमल-बहकउ
जिम चंदनि सोगंध-विधि जिम गंगा-जलु लहरिहि लहकइ जिम कणयाचलु तेजिहि झलकइ
तिम गोयम सोभाग-निधि ॥५६ जिम मानस-सरि निवसइँ हंसा जिम सुरवर-सिरि कणय-वतंसा
जिम महुयर राजीव-वनि । जिम रयणायरु रयणिहिं विलसइ जिम अंबरि तारा-गण विहसइ ।
तिम गोयमु गुण-केलि-खनि ॥५७ पुन्निम-दिणि जिम ससिहरु सोहइ सुरतरु-महिमा जिम जगु मोहइ
पूरव-दिसि जिम सहस-करो। पंचाननु जिम गिरिवरि राजइ नरवर-घरि जिम मयगलु गाजइ
तिम जिन-सासनि मुनि-पवरो ॥५८ जिम गुरु तत्वरि सोह, साखा जिम उत्तमि मुखि महुरी भाखा
जिम वनि केतकि महमहए । जिम भूमीपति भुय-बलि चमकइ जिम जिन-मंदिरि घंटा रणकइ
गोयमु लबधिहि गहगहए ॥५९ चिन्तामणि करि चडियउ आजु सुरतरु सारइ वंछिय काजो
काम-कुंभि सो वसियउ। काम-गवि पूरइ मन-कामिय अष्ट महासिद्धि आवइँ धामिय
सामिय-गोयमु अणुसरउँ ॥६० प्रणवक्षर पहिलउँ पभणीजइ माया बीजिहि सउँ निसुणीजइ
श्रीमति सोभा संभवए। देवह धुरि अरिहंतु नमीजइ विणयप्पह उवझाइ थुणीजइ
इणि मंत्रिहि गोयमु नमउ ॥६१
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