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गोतास्वामी राम
वस्तु इणि अनुक्रमि इणि अनुक्रमि नाण-संपन्न पनरह सयं परिवरिय हरिय-दुरिय जिणनाहु वंदइ । . जाणेविणु जग-गुरु वयणि तीहँ नाणु अप्पाणु निंदइ ॥ चरम जिणेसरु तउ भणइ गोयम म करिसि खेउ । छेहि जई आपणि सही होसिउँ तुल्ला बेउ ॥४४
भास सामिऊ ए वीर जिणिंद पुन्निम-चंद जिम उल्हसिउ । विहरऊ ए भरह-वासम्मि बरिस वाहुत्तरि संवसिउ ॥४५ ठवतऊ ए कणय-पउमेसु पाय-कमल संघिहिं सही उ। आविऊ ए नयणाणंदु नयरि पावाउरि सुर-महिउ ॥४६ प्रथीऊ ए गोयमु ग्रामिः देवसर्म प्रतिबोध-कए । आपणि ए त्रिसला-देवि- नंदणु पत्तउ परम-पए ॥४७ वलतऊ ए देव: आकासि पेखवि जाणिय जिण-समउ । तउ मुनि ए: मनिहि विषादु नाद भेद जिम ऊपनउ ॥४८ तठ मुनि ए सामिय देखि आप-कन्हा हउँ टालिउ ए । जाणतई ए तिहुयण-नाहि. लोक-विवहारु न पालियउँ ॥४९ अति भलउँ ए कीधउँ सामि जाणिउँ केवल मागिसि[इ] ए। चीतविउँ ए बालक जेम अहवा केडइँ लागिसिइ ए॥५० हउँ किम वार-जिणिदि भगतिहि भोलउ भोलविउ । आपण ए उचियउ नेहु नाहि न संपए सूचविउ ।५१ साचउ ए अह वीतरागु नेहु न जेहि लालियउ। इणि समय ए गोयम चित्त रागु वयरागिहि वालिउँ ॥५२ आवतउँ ए जोऊ लटि रहतउँ रागिहि साहियउँ । केवलू नाण् ऊपन्नु गोयम सो जि ऊमाहियउँ ॥५३ तिहूयणि ए जयजयकार केवलि-महिमा सुर करइ । गणधरुः ए करइ वक्खाणु भविया जिम भव निस्तर ॥५४
वस्तु पढम गणहरु पढम गणहरु वरिस पंचास गिहि वासिहि संवलिउ वीस वरिस संजमि विमासिय ।
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