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प्राचीन गुर्जर जीयह देअए दोख तीयह केवलु ऊपजए । आप कन्हइ अणहूंतु गोयमि दीजइ दाणु इम ॥३० गुरु-ऊपरि गुरु भत्ति सामिय-गोयम ऊपनीयः । इण छलि केवल नाणु राग जु राखा-रंगु करे ॥३१. जो अष्टापदि सेलि. बाँदइ. चडिउ चउकीस जिण । आतम-लबधि-वसेण चरम सरीरी सो जि मुनि ॥३२ ईय दंसण निसुणेवि गोयम-गणहरु संचलिउ । तापस पनर-सएहिं तउ मुनि दीठउ आवतउ ॥३३. तप-सोसिय-निय-अंग अम्हहँ सकति न ऊपजइ ए। किम चडिसिह दृढकाय गज जिम दीसइ गाजतउ ॥३४ गरूइ. इणि अभिमानि तापस जाँ मनि चीतव' । ता मुनि चडिड वेगि आलंबवि दिनकर-किरण ॥३५ कंचण-मणि-निष्पन्न दंड-कलस-धयवड-सहिड़ । पेखा परमाणंदि जिणहरु. भरथेसरु-विहईउ ॥३६ निय-निय-काय-प्रमाणिः चहु-दिसि संठिय जिणह बिंब । पणमवि मन उल्हासि गोयम गणहरु तहि वसिउँः ॥३७ वयर सामि-नउ जीबु तिजगि जंभकु देवु तहि । प्रतिबोधइ पुंडरीक- कंडरीक-अध्ययनु भणी ॥३८ वलता गोयम-सामि सवि तापस प्रतिबोध करे । लेइय आपण साथि चालइ जिम जूथाधिपते ॥३९, खीर खंडु घीउ आणि अमिय-वूठ अंगूठ ठवे । गोयमु एकई पात्रि काराव(य), पारणउ सवे ॥४० पांच सयं सुभ भावु उज्जल फुरि(य)उँ खीर-मिसे । साचा गुरु संजोगि कवल ति केवल-रूपि हुय ॥४१ पंच सय जिणनाह समवसरणि प्राकार-त्रयः । देखवि केवल नाणु ऊपन्नउँ उज्जोय-करो ॥४२ जाणे जिणवि पीयूष गाजंति घण मेघ जिम । जिण-वाणी निसुणेवि नाणी ह्या पाँच सय ॥४३।
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