SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन गुर्जर का कवण (णि) भोलिङ कवच (मिक) भोलिउ चितु तुह देव तुह कवणि भउ दक्खविउ, कर्बाणि कंत उम्मम्म ठाविड । कवणि मोहिं मोहिब, मणुय-कम्मु उदयह जु आबिउ ॥ जइसिरि पभणइ कंत तुहुँ, स्मणी रिद्धि म पिल्लि । लोय - विरुद्धा वयण सुणि, माणिक ठवलि म खिल्लि ॥१८ धम्मु निम्मलु धम्मु निम्मल इक्कु संसारि धम्मेण वि सिद्धि - सुह, धम्मु सयल सुह इत्थ कारण । संसारि धवड - चवलि, मणुय- जम्मु धम्मह सधारणु ॥ मिल्हिवि माया मोह पुणु, थिरु मणु वयणिहि काहूँ । इक्कु निम्मल करउँ, सेसं पाणिउ वाउ ॥१९ इत्थ चिंतहि इत्थ चिंतहि चोर सइ पंच धिगु जम्मु अम्हह तणउ, वारवार कुक्कम्मि वइँ । एहु कुमरु वर भोअ पुणु परिहरेवि धम्मेण वइ ॥ नव अहियइँ पुण पंच सय, पडिबुद्धा तहि ठावि । जंबु - कुमरु संजमु लियइ, दियइ सु सोहम - सामि ॥ २० सु-अतुल-संजम सु-अतुल - संजम पवर-चारित्त वर-सील-संजम-सहिय, दुहिय - जीव- संसार-तारण । करुणामय-मयरहर, रोय-सोय निच्छइ निवा[र]ण || जय जय गणहर धम्मवर, जय जय सिव- सुह- सामि । सयल - संघ-दुरियइँ हरउ, गणहरु जंबू - सामि ॥२१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003831
Book TitlePrachin Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Agarchand Nahta
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy