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जम्बूस्वामि-सत्क वस्तु
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सु-पमाण वर-रूव-धर, नागसेणि जंपइ मणोहरि ॥ एरिस गुण-संपत्त तहि, अस्थि न महिला-सार । सिद्धिहि कारणि कंत तुहुँ, खिज्जि म वारइ वार ॥१२
सिद्धि जोवण सिद्धि जोवण लक्ख पणयाल उत्ताणय छत्त सम, हिम-तुसार-दग-रय-पवन्ना । लोयग्ग संचिय पवर, सिद्धि-रमणि पावई ति धन्ना ॥ चंचल इत्थिय नहु रमउँ, खणि खणि खिज्जइ देहु । पलय-कालि जो नवि चलइ, सिद्धि-वहू सन्नेहू ॥१३
___ ताँव विलवइ ताँव विलवइ सयणु घणु सदि माया वि खणि खणि रुयइ, सयण मित्त विरसं विसूरहिं । महिलाइ जं दुहु हवइ, तं कहेवि कहि कवणु धीरइ ॥ कणयसिरी पिययमु भणइ, सयणह तुहु आधारु । माय वप्पु गुरु मन्नियइँ, विहवह इत्तिउ सारु ॥१४
माय घरणी माय घरणी घरणि तह माय पुत्तो चिय बप्पु तहि, बप्पु मरिवि पुत्तु रि भणिज्जइ । संसार नड-पिक्खणउँ, सयण को-वि कासु-वि न विज्जइ ॥ मोहिइ मोहिउ सयल जग, बंधवु वट्टइ लोइ। इक्कु जि मिल्हिउ धम्मु पुणु, सयणु न अन्नु-वि कोइ ॥१५
___ सुणिउ सुंदर सुणिउ सुंदर हास सविलास पभणेइ कमलवइ, पुत्त सयण सुह इत्थ कारणु । एच्छेणवि सत्तिवर(?), पुत्त सयण जे कुल-सधारणु ॥ गुल नामिहि पिययम लियइ, किं मुह गुलिया हुंति । रहि रहि सुंदर ताव घरि, जावहि पुत्त हवंति ॥१६
मरणु इक्कह मरणु इक्कह होइ जीवस्स इक्को-वि सहु अणुहवइ, इक्कु जीउ सिज्झइ निरुत्तउ । को पुत्त पडिपुत्तयहँ, धरइ मोहु संसारि खुत्तउ ॥ दिदउ मालव-देस मइँ, खद्धा माँडा नारि । करउँ धम्मु जंबू भणइ, जिव न पडउँ संसारि ॥१७
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