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१. जम्बस्वामि-सत्क वस्तु
(लेखन-समय : ई. सं. १३८१) जंबु-दीवह जंबु-दीवह भरह-खित्तम्मि । रायग्गिहु वर-नयरु, उसभदत्तु तहि सिट्ठि निवसइ । तसु गेहिणि धारिणिय, तासु पुत्तु जंबू भणिज्जइ ।' उवरोहिण सयणह तणइँ, कुमरु मनाविळ जाव । अट्ठ कन्न वर-रूव-धर, बप्पु वरावइ ताँव ॥१
कणय-कुंडल कणय कुंडल मउड वर-हार चीणंसुय वत्थ तहि, विविहि भंगि सिंगारु भावहि । परिणेइ वर कन्न तहि , अट्ठ पवर मंगलुवयारिहि ॥ नवनव कोडि सुवन्न तहि, परिणिउ आविउ बारि । ठावि ठावि लूणुत्तरइ, पइसइ घरह मझारि ॥२
आसि पुहबिहि आसि पुहविहि निवह सो पुत्तु पभवो वि गुण-गण-कलिउ, बिहि-वसेण सो चोरु जायउ । तहि लच्छि मुसमह मिसिण, उसभदत्त-मंदिरि सु आबउ ॥ पंचस[य] हि चोराहँ तहि, रयणिहिं पहिलइ जाम्म । धम्मू भणंतउ दिटु तणि(?) कुमर सु जंवू-सामि ॥३
विविह जोणिहि विविह जोणिहि ममिउ संसारि भुंजेविणु दुक्ख-सय, जम्म मरणु बंध व विमोयणु । कह कह-वि कम्मह विधरि, मणुय-जम्मु लद्धउ सु-सोहणु ॥ सिधु मई मइ एह महु(?), महि इत्तिउ किर सारु । जे नवि धरणिहि सउँ रवइ, छलहि ति कलि संसारु ॥४ ___मणुय-जम्मिहि मणुय जम्मिहि, जाउ जो बालु हिंडेइ जो आउलउ, जाउ मुन्नु एरिसु भणंतउ । नहु मुणहि इहु वयण-छलु, अथिरु एहु मोहणी घत्थउ ॥ जू मुसल दुइ उब्भिया, जम्मणि मंगल-कम्मु । जुइ जाया मूसलि मरहि सुंदरि किज्जई धम्मु ॥५
सद्द-रूवह सद्द-रूवह रसह गंधस्स तह फरसह सुंदरह, विसय-सारु जहि फल [भ]णिज्जइ ।
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