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प्राचीन गुणराय संचय तावह गयसुकुमाला- सिरि पालि करेई ।
दारुण खयर-अँगारा सिरि पूरण लेई ॥१५ डज्झइ मुणिवरु गयसुक्कुमालू अहिणउ दिक्खिउ गुणिहि बिसाल्लू । जिव खर पवण न सुरगिरि हल्लइ - तिच खणु इक्कु न झाणह चल्लइ ॥
अवराहेसु गुणेसूकिर होइ निमित्तू ।
सह जिय पुन्व-कयाइ हुयइवि थिरचित्तू १६ अहियासइ मुणि गयसुकुमालू निठुरु डज्झइ कम्मह जा । अंतगडिवि उप्पाडिउ नाणू पाघिउ सासब सिच-सुह-ठाणू ॥
सिरि-देविंदसूरिंदहँ चयले खमि उवसमिसहियउ ।
गयसुकुमाल-चरित्तू सिरि-देल्हणि रइयउ ॥१७ एहु रासु सुहडेयह (?) जाई रक्खउ सयलु संघु अंचाई । एहु रासु जो देसी गुणिसी सो सासय-सिव-मुक्खइँ स्वहिसी ॥१८*
* अंत : गयसुकुमाल-रास समाप्त.
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