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८, गयसुकुमाल-रास (कर्ता : देल्हण रचना-समय : ई.सं. १२५० लेखन-समय : १३८१ )
पणमे विणु सुय-देवी सुय-रयण-विभूसिय । पुत्थय-कमल-करी ए कमलासणि संठिय ॥१
पभणउँ गयसुकुमार-चरित्तू पुब्विं भरह-खित्ति जं वित्तू ।
.............."x x जु उज्जिल पुन्न-पएसू।। तह सायर-उवकंठे वारवइ पसिद्धिय ।
वर-कंचण-धण-धन्नि वर-रयण समिद्धिय ॥२ वारह जोयण जसु वित्थारू निवसइ सुंदर गुणिहि विसालू । वाहत्तरि-कुल-कोडि-विसिट्टो अन्नवि सुहड रणंगणि दिद्रो॥
नयरिहि रज्जु करेई तहि कहनु नरिंदू ।
नरवइ मंति-सणाहो जिव सुर-गणि इंदू ॥३ संख-चक्क-गय-पहरण-धारा कंस-नराहिव-कय-संहारा । जिणि चाणउरि-मल्लु वियारिउ जरासिंधु वलवंतउ धाडिउ ॥
तासु जणउ वसुदेवो वर-रूव-निहाणू ।
महियलि पयड-पयावो रिउ-भड-तम-भाणू ॥४ जणणि हि देवइ गुण-संपुन्निय नावइ सुरलोयह उत्तिन्निय । सा निय-मंदिरि अच्छइ जाम्ब तिन्नि जुयल-मुणि आइय ताम्व ॥
सिरिवच्छंकिय-वच्छे रूविं विक्खाया।
चिंतइ धन्निय नारी जसु एरिस जाया ॥५ मुणिवर सुंदर-लक्खण-सहिया मह सुय कंसि कयच्छि गहिया । वारवई मुणि विभउ इत्थू कहि वलि वलि मुणि आयउ इत्थू ॥
पूछइ देवइ ता.... .... .... .... ।
पभणहि मुनिवर ताम्ब समरूव सहोयर ॥६ सुलस सराविय कुक्खिं धरिया जुव्वण-विसय-पिसाइं नडिया। सुमरिउ जिणवरु नेमि-कुमारू तसु पय-मूलि लयउ वय-भारू ।।
पुत्त-सिणे हि ताम्व देवइ डुल्लइ मणु । जसु करि कंकण होई तसु कयसं दप्पणु ॥७
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