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प्राचीन गुर्जर काव्य सचय
भासा
खभायति वर-नयरि विवु निप्पज्जए ।
रयणमउ नेमि-जिणु ऊपम दीजए ॥३७ दिसंति कंति रयण-कति सामल धीरा वहु पंकति बहु सकति जाइ सरीरा । निवसए वूिवु जो सालह संठिओ विजयसिण-सूरि गुरि पढम पतीठिओ॥३८ निपनु परिपूरनु सामल-देउ धणु तिजपालु जिणि आवुय नेओ । धवल-सुत सुरहि-पुत ठविय तहि रहवरे खडइ सुहडा सुमुहु आवुय-गिरवरे ॥३९ नयर वर-गामह माहिहि आवए सइत भवियहो जिण पहेरावए । आवुय-तलवटे रत्थु पहूतओ तनियओ वर णीय पाज चडंतओ ॥४० थड-ऊथडइ रहु पाज विसमी खरी वेगि संपत्त अविक्क वर अच्छरी । सानिधि अवाइय रत्थु चडंतओ देवलवाडए दिणि छठइ पहुतओ ॥४१
ठवणि आवुय-सिहरि संपत्तु देउ पहु नेमि-जिणेसरु वणसइ सवि विहसणहँ लग्ग आइउ तित्थेसरु । उच्छंगिहि जुगादि-जिणु (देउ) जिणु पहिलउ ठविजइ तुहुँ गरुयउ निमिनाथ-विवु तिजपालिहिं कीजइ ॥४२ हक्कारहु वर जोइसिय पइठह दिणु जोयहु तेडाबहु चउवियहँ(?) संघु पुर-पाटण-गामहँ । वार संवच्छरि छियासियए परमेसरु संठिउ चेत्रह तीजह किसिण-पक्खि निमि भुवणिहि संठिउ ॥४३ चहुँ-आयरिहि पयट्ठ किय वहु भाउ धरंतह रागु न वद्धइ भविय-जणहँ निमि तित्थु नमंतह । श्रावेह डावडा(?) तणे जिणु पहिलउ न्हवियउ पाछइ न्हवियउ सयल संघि तुम्हि पणमह भवियहु ॥४४ रिषभ-चित्त-अमि जिनमु तासु कल्याणिकु कीजइ दसमि तित्थु नेमि-जात-रेसि सँघ-पासि मॅगीजइ । संघ-रहिउ जिणि जात करिवि नेमि-भुवण विसाला
पूरि मणोरह वस्तुपाल मंति तेजपाला (१) ॥४५ १३. १ धरना.
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