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________________ आबू-रास अभिनवु कवितु रयं परमेसरि । पभणउ नेमि - जिणंदह रासो ॥१ चंद्रावती-नयरि वक्खाणं । वहुयारामिहि ऊपम दीजइ ॥२ मढ मंदिर धवलहर पगारा । धनु धनु धम्मिउ लोकु वसेइ ॥ ३ निम्मल सोल कला जिम चंदो । वहुयहँ लोयहँ तणउजु ती ॥४ तहि गिरिवर पुणु आबू नाउं । राठी गूगुलिया तहि तपसी ( ? ) ॥५ अचलेसरु तसु ऊपमु 'दीजइ । सिरिमा सामिणी कहउ विचारी ॥६ तहि छइ सामिउ रिसह - जिणिंदो । तहि छइ सामिणि अंबाएवी ॥७ उत्तर दाखिण संघु जिणवरु न्हावहि नाहि धम्मिय वहु-गुण-वन्ना ॥८ ससि-मंडलि जिणि नाउ लिहाविउ । वीजउ नेमिहि भुवणु सुणीजइ ॥ ९ ठवणि नमिवि चिराणउ थुणि नमिवि वीजा मँदिर - निवेसु । त पुहविहि माहि जो सलहिजऍ ऊतिम गुजरु देसु ॥ १० [ कर्ता : पाल्हण मज्झि पहाणं पण विणु सामिण वासरि नंदीवर धनु जासु निवासो गूजर - देसह वावि सरोवर सुरहि सुणीजइ त्रिग चाचरि चउहट्ट - विथारा छत्तिस राजकुली निवसेई राजु करइ तह सोम - नरिंदो हिव वन्नउ गिरि पुहवि-प्रसिद्धं घण-वणयराहँ स-जलु सु-ठाउं तसु सिर वारह गाम निवासो (?) तसु सिरि पहिलउ देउ सुणीजइ तहि छइ देवत बाल-कुमारी विमलिहि ठवियउ पाव - निकंदो साधु संघह करइ सँखेवी पुरुष पछिम धम्मिय तहि आवहि पेखहि मंदिरु रिसह रवन्ना धनुधनु विमलड जेणि कराविउ विहुँ सइ वरिसह अंतर मुणीजइ Jain Educationa International त सोलंकिय-कुल- संभमि उँ त गूजरात- धुर-समुधरणु परिवल दल जो ओडवऍ, राजु करइ अन्नय तणओ मूल के अशुद्ध पाठ : ४.३. वनउ ८ १. ९. १. बिमलsि. सूरउ जगि जसवाउ । राणउँ पसाउ ॥ ११ जिणि पेलिउ सुरिताणु । जासु रचना - समय : १२३३ अगंजिउ माणु ॥१२ पुरुव्व पच्छिम २ उतर दाक्खिण. For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003831
Book TitlePrachin Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Agarchand Nahta
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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