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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय
ताव तेत्थु धणवइ संपत्तउ कंठि लग्गि सो भणइ रुयंतउ । चंदण प्राण कुमास धरे जं तेडिउ आवउं लोहारो। धाइउ सेठि ऊतावलउ सा चंदण न करइ आहारु ॥२९ अच्छइ मणह माहि चिंतंती दाणि अ-दिन्नइँ किम्व पारंती । ताखणि आवइ वीरु जिणु सूपि कुमासे जिणु पारावइ । देवे जय-जय-कारु किय पवण-वेगि सोहम्मउ आवइ ॥३० इंदु स चंदण-चलण नमेई तक्खणि पुण नव केस करेई। भग्ग निवल किय आभरण तूर-सबदि अंबरु गाजेई । अध तेरह कोडि दवय सो नाडिय नयर-राउ तसु लोभह जाइ ॥३१ इंदु भणइ धणु चंदण लेई बलवंड प्राणि न पावइ कोई । बाल भणइ यउ ताय-हरे सरवरि कमल जेव विहसेई । सेट्रि सु मणि आणंदियउ धणवइ वद्धावणउं करेई ॥३२ जावह इद इंदा-पुरि जंती तक्खणि तउ तेडिय मृगवत्ती । चंदणबाल तु बूझवए जिणि दिट्ठी हुइ नयणाणंदू । धन्न धन्न सु-कयस्थ तुहुँ जि]ण पाराविउ वीर-जिणिंदू ॥३३ संखेपिणि जिण दिन्नं दाणू वीर-जिणिंदह केवल-नाणू चंदण पढम पवत्तिणिय परमेसरह निव्वाणह जंती। बत्तीसा सय खित्त तहि अखलिउ सुहु सिद्धिहि माणंती ॥३४ एहु रासु पुण वृद्धिहि जंती भाविहि भगतिहि जिण-हरि दिती। पढई पढावइ जे सुणइ तह सवि दुक्खइँ खइयह जंती । जालउर-नयरि असिगु भणइ जम्मि जम्मि तूसउ सरसत्ती ॥३५॥
अंत : इति श्रीचंदनवाला-रासः ।।
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