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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय तं निसुणिवि पहुतउ अस्थाणे तहि बहु बइठा राणो-राणे । चरि आविउ रायह कहिउ हयगय गुडिय तुरिय पाखरिया । राउ सु कोपानलि चडिउ गिरि टलटलिय धरणि थरहरिया ॥१० अभउ देउ डंगुरउ वजाविउ जो जंपावइ तं तहइ घोडा-खुर-रजि झंपिउ भाणू । पवण-वेगि ताखणि चलिउ । चंपा-नयरी गया विहाणं ॥११ नेत्र-रयणि सिरि बाधउ पाटू ताखिणि तिणि मोकलियउ भाटू । काँइ राय ! निच्चितु तुहुँ भाटु भणइ सीमह गय गुडिया । तखणि चलियउ सम दलिण गुलुगुलंत बे पक्खा मिलिया ॥१२ वज्जिय ढक्क बूक नीसाण केण वि खचिय तुरिय केकाण । बलिया मंडलिक मउड-धर सेल कुंत धणु वरिसइ मेहू । झूझु करइ संग्राम-भरि अंगो-अंगिं भिडिया बेऊ ॥१३ हत्थि-कुंभ-थलि खिवियउ पाऊ भय पडियउ दहिवाहणु राऊ। घोडइ चडि नासिउ गयउ सीहह चित्रउ पूणइ काई । तुरय-थट्ट गय-घड लक्ष्य तउ जीतउं सेयाणइ राइं ॥१४ केण-वि लद्धा रयण-भंडार केण-वि कंचण तणा कुद्वार । केण-वि पाविउ धन्नु धणु लूसड चोर चरड दंदडिया। पाइकु एकु फिरंतु तहि धीय सहिय धारिणि पिडि पडिया ॥१५ तक्खणि तिणि वाहणि जोत्रावी लेउ उच्छंगिहि बेउ चडावी । क[ट]किहि सउ घरि चालियउ मागि वहंतउ सो मन्नावइ । होइसि तुहु महु धर धरणि जइ तुहु सुंदरि निय मण भावइ ॥१६ धिगु-धिगु चिंतइ यउ संसारू महु दहिवाहणु आसि भतारू । लाइय विहि कइसं कहउँ रोवइ करुण पलाव करती। अंसुय भरिय तलाउलिय अच्छइ धारिणि मणि चिंतंती ॥१७
........................ । हियइ सरिसु आलोचियउँ पडिय स मुच्छिय केणइ कारणि । जं दहिवाहणु आसि पिउ हियडं फूटिउ मुइय स धारिणि ॥१८ ताव तिथु पाइकु चिंतेई चंदण कट्ठ लेउ सो आविउ । संकारिय रोवंत मणि गयइ सलिलि किं बज्झइ पालि ।
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