________________
चंदनबाला-रास [ कर्ताः आसिग रचना-समय : १३ वीं शताब्दी लेखनसमय : १३८१ ] जिण अभिनवि सरसइ भणए पुहविहि भरह-खेत्ति जं वीतं । वीर-जिणिदह पारणए निसुणउ चंदनबाल-चरितं ॥१ प्रथम लील कसमीर करती ललिय लोल कल्लोल वहंती । अठ-दल-कमल-मज्झि उप्पत्ती सकल सबल अम्हि तालह दिती। तूठी सप्त भवंतरिहि सिव-गति-मति आसिव(?)सरसती ॥२ जिण चउवीस वि चलण नमेवी माइ बापु गुरु हियइ धरेवी । अच्चुत अंबिक-देवि तहिं ब्रह्म-संति अनु देवा देवी । कवियर हंसा गढ़ (?) वयणि पगि-पगि राख करउ तुम्ह देवी ॥३ अत्थि भरहि पुण चंपा नयरी किरि अभिनव अमराउरि सारी । चउरासी तहि चउहटह मढ देउल धवलहरे सोहइ । कूयाराम तलाव तहि महि ऊगमतउ दिणयरु मोहइ ॥४ राज करइ दधिवाहणु राऊ चोर चरड भंजइ भडवाऊ । सज्जण समल समुद्भरणु नं तिहि दंड न वेठिहि वारउ । पोलिहितालं नवि पडए दस जोयण गढ पाखे सारउ ॥५ दहिवाहण-गेहिणि सु-पहाणी रूयवंत सा धारिणि राणी। तुंग-पयोहर खीर-सर (?) कुडिल-केस भुय-नयण-सुचंगी। हंस-गमणि सा मृग-नयणि नव-जोवण-नव-नेह-सुरंगी ॥६ गब्भु वहइ सा धारिणि राणी धम्म-कजि सीलि सा खरिय सियाणिय । नव मासे पूरे दिवसे जननि पसूई जाई बाला । विसमई नाउँ प्रतीच्छियउ वाधइ सुंदरि गुणहि विसाला ॥७ एथंतरि कहिसु निरुत्तं कोसंबी-नयरी जं वीतं । सेयाणिउ राजु करए तासु धरणि सुम्मइ मृगवंती । वीर-जिणिदह पारणए पिय-आगइ पभणइ विहसंती ॥८ नितु-नितु नयरी आवइ सामिउ चारि मास ऊआस-किलामिउ । पूरि मणोरह मझ तणउ सामिय सफलु जम्मु मह कीजइ । प्रिय वयणे मणि संभरिवि वीर-अवधि नीछइ पूरीजइ ॥९
Jain Educationa Interational
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org