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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय
इत्थंतरि जण ! निसुणहु भावि इहि संसार-समुह-जलि
वंदउ मोढेरा-नयरि जे दिउ ते वंदिय वाणारसि - महुरह जिणचंदु
संखेसर चारोप-पुरि वंदहु सामिउ पास - जिणु का विदेह हइ दालिद्दु
वंदहु पूयहु भविय - जण ! जे तियलोए जिण-भवणाई ॥४५ अट्ठावइ रिसहेसरु वंदहु कोडि दिवालिय जिम चिरु नंदहु । सितुज्जहँ सिहरिहि ँ चडिवि अच्चउँ सामिउ आदि - जिणंदु । आबुइ पणमउ पढम - जिणु उम्मूलइ भव-तरुवर - कंदु ||४६ ऊजिलि वंदहु नेमिकुमारु नव भव तिहुयणि तरहि सँसार । अंबाइय पणमेहु जण अवलोयणा - सिहरि पिक्खेहु । विसम तुंग अंबर-रयणॉ वंदहु सम्बु पजुन्न हूँ बेउ ॥४७ थुण वीरु सच्चउर हँ मंडणु पाव - तिमिर - दुह - कम्म-विहंडणू । चडावलि - पुरि वंदउ देउँ । विमल - भावि दुइ कर जोडेऊ ॥४८ थंभणि जाइवि नमहु जिणिदु । नागदह फलवद्धि-दुवारि । जालउरा - गिरि कुमरविहारि ॥४९ कासु वि तोडइ पावह कंदु | खासु सासु खंपणु फेडे । तासु रि! नव निधान दरिसेई ||५० वेहल महि नंदन महि रोपइ (?) | तसु कुलि आसाइतु अच्छंतु । कवि आसिग बहु-गुण-संजुत्तु ॥ ५१ माउसालि सुम्मइ सीयलरउ । कवि आसिगु जालउरह आयउ । नवउ रासु इहु तिणि निप्पाइ ॥५२ विक्कम -कालि गयइ पडिपुन्नइ । हत्थोहत्थि जिण निप्पायउ । रउ रासु भवियहं मणमोह ॥ ५३
कासु विदे निम्मल नयण जसु तूसइ पहु पास - जिणु वाला - मंत्र - तणइ पाछोपइ
तसु सक्खहँ कुलचंद फलु तसुवलहिय पल्ली पवर सातउ परिया कवि जालउरउ आसी दवदोही वयण (?) सहजिपुरि पासहँ भवणि
संवतु बारह सय सत्तावन्नइ
आसोयहँ सिय-सत्तमिहि संतिसूरि-पय-भत्तयरि
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४७. ४. संबुपजुन ४८. २. वंदउं.
४५. ३. इहिं संसारि. ४६. ४. सामिउं. ४९. ६. विहारं. ५०. १. हडइ. २. फ़ोडेई. ५२. २. सुंमइ. ५३. २. पडिपुंनइ पुष्पिका :
इति जीवदयारास समाप्तः ॥
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करहु धम्मु जिम मुच्च पाविं । तरण-तरंड सयल तित्थाई ।
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