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________________ जीवदयारास नयर-पुव आया वणिजारा जण-णिसमाणु अरिहि परिवारा (१)। धम्म-कयाणउँ ववहरहु पाव-तणी अँडसाल निवारहु । जीवह-लोहु समग्गलउ कुम्मारगि जणु जंतउ वारहु ॥१८ एगिदिय रे जीव ! सुणिज्जइ बेइंदिय नवि आसा किज्जइ । तेइंदिय नवि संभलइ चउरिदिय महि-मंडलि वासु । पंचिंदिय तुहुँ करहि दय जिण-धम्मिहि कीजइ अहिलासु ॥१९ धम्मिहि गय-घड तुरियहँ थट्ट मय-भिंमल कंचण कसवट्ट । धम्मिहि सज्जण गुण-पवर धम्मिहि रज्ज रयण-भंडार । धम्म-फलिण सु-कलत्त धरि बे-पक्रव-सुद्ध सील- सिगार ॥२० धम्मिहि मुक्ख-सुक्ख पाविज्जइ धम्मिहि भव-संसारु तरिज्जइ । धम्मिहि धणु कणु संपडइ धम्मिहि कंचण- आभरणाई । नालिय जीउ न जाणइ य ए सहि धम्महँ तणा फलाइं ॥२१ धम्मिहि संपज्जइ सिणगारो करि कंकण एकावलि हारो । धम्मि पटोला पहिरिजहि धम्मिहि सालि दालि घिउ घोलु । धम्म-फलिण चितसालियइँ धम्मिहि पान-बीड तंबोलु ॥२२ अरि जिय ! धम्मु इक्कु परिपालहु नरय-वार-किवाडइँ तालहु । ___ मणु चंचल अविचलु वरहु कोहु लोहु मउ मोहु निवारहु । पंच बाण कामहँ जिणहु जिम सुह-सिद्धि-मग्गु तुम्हि पावहु ॥२३ सिद्धि नामि सिद्धि-वर-सारु एकाएकिं कहउ विचारु ।। चउरासी लक्ख जीव-जोणि जीवह जो घल्लेसइ घाउ । अंत-कालि दू-संमरइ अंगि कोइ तसु होइहि दाहु ॥२४ अरु जीवइँ अस्संखइ मार मारोमारि करइ मारावइ । मुच्छाविय धरणिहि पडइ जीउ विणासिवि जीतउ मानइ । मच्छ गिलिग्गिलि पुणु वि पुणु दुख सहइ ऊथलियइ पन्नइ (2) ॥२५ पन्नउँ जउ जगु छन्नउँ मन्नउ कूवह संसारिहि उप्पन्नउँ । पुन्न म सारिहि कलि-जुगिहि ढीलइ जं लीजइ ववहारु । एकहँ जीवहँ कारणिण सहस लक्ख जीवहँ संहारु ॥२६ १८. ६ कुमारगि. १९. ४ मडलि. ११. ५. करहिं. २१. २. तरीजइ. २१. ३. संपडई. २२. २. हारु. २२. ५. धम्मि. २३. २ वारि. २३. ४. मय. २३. ५. कामहिं. २४. ६. होइहु. २६. १ मंनउ २६ २ उप्पनउं. Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003831
Book TitlePrachin Gurjar Kavya Sanchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Agarchand Nahta
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1975
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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