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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय ___ तो बंधव गय तायह पासि । ___ सव्वे केवलि हुय गुण-रासि ।
बाहूबलि मंडिउ थियउ ॥१० -
[२] पहु भरहेसरि एव बाहू वलिहि कहावियउँ । 'जइ बहु मन्नहि सेव तो प्रवणउ संग्रामि थिउ' ॥११ गरुयाह एक-इ नाँव दूबोलिहि गंजण चडी य । सो बाहूबलि ताँव . दूवउ गलइ लियावियउ ।१२.. सो बाहुबलि-वाणि संभलेवि अवझह गयउ । भरह-तणइ अत्थाणि पणमेविणु दूअउ भणए ॥१३ 'मई लाधं तहि ठावि मउडि महेसरु जं करइ । अवरु इँ साँभलि सामि बाहूवलिहि कहावियउँ : ॥१४ . रवतह गाँगह तीरि दडउ जेव उच्छालियउ। घाउ म होउ सरीरि पडतउ दय करि झालियउ॥१५ तं वीसरियं आजु भरहेसरु मय-भिंभलउ । जइ करि लाधउँ राजु त कि अम्हि सेव मनाविसइ ॥१६ गंग सिंधु दुइ राँड अनु जइ नाहल साहिया । ए तीणइ छ-इ खाँड जीतउँ मानइ भामटउ' ॥१७ एरिस वयणु सुणेवि . 'बिलि बिलि हुंति न गोहडी य । अंगूठइ टेरेवि बाहूबलि बाहा-बलिहि" ॥१८ एत्थंतरि नह-मागि आवेविणु नारउ भणए । र 'तलि महियलि अरु सागि नउ थी बाहूबलि-सवउ' ॥१९ ।
[३] कोवानलि पज्जलिउ ताव भरहेसर जंपइ । 'रे ! रे ! दियहु पियाण ढाक जिम महियलु कंपइ ॥२० गुलगुलंत चालिया हाथि नं गिरिवर जंगम । हिंसा-रवि बहिरिय-दियंत हल्लिय तुरंगम ॥२१ .. ७. ३. चक्कु. ८. २ मनइ. ११. २. मनहि. १२ १ वढीय. १२. २. दूवो. १३. ३. अथाणि. १५. २. दडउ । जव उछा.
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